...

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सफ़र.... ज़िंदगी का
सफ़र ज़िंदगी का लिखूँ तो शायद रुकना नामुमकिन हो
जो बीत गया अब लगता है वही बेहतरीन था
अब जो बीत रहा है बिताया नहीं जा रहा है
इस कठिन दौर से गुजरना ठीक मुश्किल है उस तरह
जिस तरह गहरी नदी हो सामने
और पास न हो कोई सहारा कोई मंज़िल जिस तरह
सारी मुसीबतें जैसे मेरे हिस्से का गईं
मेरा रास्ता जैसे आसान पा गईं
अब दूर उनसे होना लगता...