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जीवन कितना अनिश्चित है
जीवन कितना अनिश्चित है और प्रेम तो उससे भी अधिक। सितारे बदलते हैं जब वह घटित होता है जीवन में। और सितारे ही बुझ जाते हैं जब बीत जाता है । जीवन की सबसे महत्वपूर्ण यह घटना ऐसे ही घटा करती है जीवन में कि न तो उसे कोई आते हुए देख पाता है न जाते हुए ही। हम सिर्फ़ यात्री भर होते हैं उस यात्रा के जो कभी हम जानकर शुरू नहीं करते। मगर फिर भी होते हैं। हम एक दिन एक अचरज करते हैं बैठकर अतीत पर जब वह जीवन बीत जाता है कि हम भी किसी कहानी के नायक या नायिका हुए थे।

हमने वह होना चाहा या चुना नहीं था मगर हुए थे। वह भूमिका हमें किसने सौंपी थी ? कुदरत ने या वह स्वयं हमारे जीवन के अभाव से जन्मी थी । वही जिसे भरने की कोशिश में बीत गया जीवन। कितना वक्त, कितने मौसम, कितने अवसर, कितनी उम्र, और भी कितना कुछ बीतता चला गया जिसमें लेकिन हमें तो वही चाँद चाहिए था जो एक समय बाद हमारे लिए तारा भी नहीं रहता। मिला तो यह कि एक दिन जो व्यक्ति हमें समूचे संसार की भीड़ में सबसे अनूठा दिखलाई पड़ता था वह हमारे लिए भी भीड़ का हिस्सा हो गया और यह जो हुआ यह घटना भी घट चुकने के बहुत बाद मालूम पड़ती है। हमारे जीवन की प्रेम यात्रा कौन निर्धारित करता है हम नहीं जानते । हम नहीं जानते कि कौन करता है वह जादू जो एक रोज खो जाया करता है। कितने ही रहस्य हैं जो हम पर अधूरे ही खुलते हैं। प्रेम भी उनमें से ही कोई एक हुआ करता है।

-वियोगिनी ठाकुर