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अंधा प्रेम
जीवनभर बलवंत ने अपने भाई की अच्छी परवरिश की ।बलवंत शहर में नौकरी करता था और भाई गांव में रहकर पुश्तैनी जमीन पर खेती किसानी। शायद इसी वजह से बलवंत का अपने भाई के प्रति अगाध स्नेह भी था।कि पुरखों के जमीन की सेवा वह कर रहा है।वह तो गांव छोड़कर शहर आ गया नौकरी की चाह में पर भाई तो निरंतर अपनी पुरखों के जमीन की सेवा में ही लगा रहा..और इसी वजह से बलवंत का अपने छोटे भाई के प्रति अगाध स्नेह रहा..वह न केवल अपनी बल्कि बलवंत के भी हिस्से की जमीन को खूब मेहनत करकर हरा भरा लहलहाता रहा..यद्धपि दोनो भाइयों के जमीन का अभी कोई बंटवारा नही हुआ था। बलवंत तो यह मानकर ही चल रहा था कि, नौकरी से अवकाश के बाद तो उसे भी गांव ही जाना है और फिर दोनों भाई खूब मेहनत कर अपने आगे के कुल के लिए भी तो और आगे बढ़ाएंगे।क्योंकि वह बहुत अधिक समय गांव में नही दे पाता था.. इसलिए वह अपने भाई की हर इच्छा पूरी करता था। ताकि उसके भाई को गांव में किसी भी तरह की तकलीफ न हो। मगर वह यह भूल जाता था कि अपने भाई और उसके परिवार की इच्छाओं की पूर्ति में कहीं न कहीं वह अपने ही पत्नी और बच्चों की इच्छाओं को मार रहा है। धीरे धीरे बलवंत के रिटायर मेन्ट का समय नजदीक आने लगा तब उसकी पत्नी ने कहा कि कहीं यहीं शहर में कोई छोटा मकान देख लेते हैं ।बच्चे भी पास ही रहेंगे तो उनका भी आना जाना लगा रहेगा। परन्तु बलवंत की इच्छा रिटायर मेन्ट के बाद गांव अपने जान से प्यारे भाई के पास ही रहने की थी। ऐसे भी वह बाप दादाओं की भूमि थी। उसने मनाकर दिया यह कहकर कि दो बेटियां हैं दोनो अपने अपने घरों में शेटल हो ही चुकी हैं ।हमदोनों वहीं रहेंगे ।जो पैसा मिला है वह वहीं घर मे लगाकर और अच्छा कर लेंगे।ऐसे भी जब जब घर की मरम्मत करने का हुआ मैंने वहां लगा दिया ।अब इतना नही है कि मैं अलग से घर भी बनवा लूं और पुश्तैनी मकान का भी जीर्णोद्धार करवा लूं। भाई ने पैसा मंगवाया है मकान को अच्छे से बनवाने का।
अंततः बलवंत ने अपना बहुत सारा पैसा भाई को भेज दिया। गांव का बड़ा सा घर बहुत अच्छा बन भही गया ।पर जब बलवंत वहां नौकरी समापन के बाद अपनी पत्नी के साथ रहने गया तब भाई का वही पुराना वाला प्रेम नही रह गया था। और एक दिन ऐसा आया कि उसने अपने भाई बलवंत से कह दिया--" भैया आप कहीं और मकान देख लीजिए। हमलोगों को शुरुसे अलग रहने की आदत हो गई है तो पत्नी बेटे बहु को सबका साथ रहना रास नही आ रहा है।"
यह सुनते ही बलवंत के आंखों से आंसू गिरने लगे।और वह इतना ही बोल सका--तुम्हारी भाभी शुरू से ही एक मकान शहर में लेने बोल रही थी परंतु मैंने उसकी एक न सुनी। जो कुछ भी वह बचाती थी मैं उसके लिए नही करकर तुम्हारे लिए भेज देता था। मैंने तो अपने रिटायरमेंट के भी अधिकांश पैसा इसी मकान में लगा दिया कि सब साथ मे रहेंगे। चलो कोई बात नही...मुझे ठोकर खानी भी चाहिए थी..आंख बंदकर जब हम किसी पर अंधा विश्वास करते हैं तो उसकी सजा तो मिलनी ही चाहिए। ग्लानि में वह अपनी पत्नी के आगे हाथ जोड़कर भीगी आंखे लेकर खड़ा रहा, एक अपराधी की भांति।

मीना गोपाल त्रिपाठी