...

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ye Sagar


खो के ख़ुद को यूं ही इन लहरों के वादियों में
जीता रहूं यूं ये पल उम्र भर
यूं ही लहरें आती- जाती रहे
यूं ही बहकता रहे ये मदमस्त नज़र

मन के सारे शोर खामोश है
जीवन मेरा इस पल में मदहोश है
कितना सुकून है उफ्फ क्या सुरूर है
दुनिया के ताना बाना से मेरा दिल आज बहुत दूर है

हर उलझन जीवन का गुमनाम है
जन्नत सा इस पल में आराम है

सागर के पहलू में यूं बैठा रहूं मैं
घर बार संसार सबकुछ भुलाकर
सारी रात यूं जगकर जीता रहूं में
सारे भरम - उम्मीदों को गहरी नींद में सुलाकर
खो के ख़ुद को यूं ही इन लहरों के वादियों में
जीता रहूं ये पल उम्र भर
यूं ही लहरें आती जाती रहे
यूं ही बहकता रहे ये मदमस्त नज़र

आज महबूब का नही कुदरत का साथ है ।
हवाओं का मेरे हहाथों में हाथ है.....
ये महकती फजाएं
ये लहरों का शोर
ये काश कभी कटे ही न ये रात
कभी न हो भोर

दुनिया के कैद से मन आज आजाद हूं
न कोई गम है ...न अवसाद है
ज़िंदा रहना और जिंदा रहकर जीना
ये लहरें, ये हवाएं , ये सितारे
मुझको समझा रहा है ...
परेशान सेठ और हंसता फकीर का
उदहारण देकर ..
खो के ख़ुद को यूं ही इन लहरों के वादियों में
जीता रहूं यूं ये पल उम्र भर






© Rajeev Ranjan