...

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गुड्डे गुड़ियों वाला प्यार पार्ट 2
"ओ हीरो, दादी को संभालो "
ढलान हैं ज़रा
"हां क्यों नहीं "
राजू ने सिमी की दादी को खुश दिल्ली से कंधे का सहारा दिया और सिमी की तरफ देख मुस्कुराया !
राजू ये.. राजू वो ...
सिमी के इशारे पर ढेड़ों.. काम... राजू चुटकियां बजाता हुआ करता जाता मानों उससे बढ़ कर उसे किसी काम में रुचि ही न हों ,फर्क बस इतना था के सिमी सिर्फ उसे अपना दोस्त मानती थी और राजू दोस्ती से दिल्लगी की उड़ान लिए अलमस्त बिना पंख उड़े जा रहा था ,वो जानता था के सिमी के वो लायक़ नहीं क्योंकि सब यही कहते थे ,
"अजी भला होता के राजू ही सिमी का जीवन साथी बनजाए_बचपन के साथी तो हैं ही ",राजू की मां तो यही कहती थी ,पर सिमी के घर वाले तो सिमी के लिए किसी खूबसूरत राजकुमार को चाहते थे, ठीक राजू भी अपने मां के लिए उनका राजकुमार था , माँ की बाते भी उसे रह रह कर याद आती "बेटा बड़े लोगो से ज़रा फासले से मिला करो ,क्योंकि उनके लिए हम सेवक हैं ,बुरा मान जानते हैं जल्द अगर हम भी उन्हें ये एहसास करवाए .माँ की गहरी बाते तुरंत कहा समझ आती थी , पर राजू अब बड़ा हो गया था , वो ज़िंदगी के रंगमंच को समझने लगा था ,उसने इसलिए सिमी को कभी नहीं जता पाया के वो उसे दिल ही दिल पसंद करता हैं !
राजू बस उसके बचपन का गुड्डा ही रह गया था उसे हंसा कर खुद हंसना ही उसकी खुशियां थी ।

© 0✍️sifar
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