एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त क्या बताती हैं।।
जो पुरुष पराई स्त्री से संबंध बनाता है श्री मत भगवत गीता के अनुसार उसे अत्यंत पीडना भोगनी पड़ती है। जो पुरुष पराई स्त्री से संबंध बनाता है ।।
उसे पहले अपने कर्मों का हिसाब -किताब नर्क में या फिर स्वर्ग जा देना पड़ता है।। और यहां सजा कर्मा के विधान पूर्वक मनुष अलग अलग योनि में जन्म प्रादान करता और ना ही उस योनि को यह पता की जन्म सजा या वरदान।। पहला जन्म की श्रेणी में उसे 🐺 भेड़िया की श्रेणी में योनी देने प्रावधान है। दूसरा जन्म में कुत्ते की श्रेणी में योनी मिलने का आश्वासन दिया गया है।🐶 तथा तीसरी श्रेणी में सियार चौथे जन्म में गिध बनता है।। पांचवें जन्म में शाप तथा छठवें जन्म में कौआ तथा सातवें जन्म में बगुला बनता है।। श्रीकृष्ण की सभा में दंड रूप जीवन पाकर योनि में जन्म लेकर अपनी मुकछ के आजीवन भृमण करना ही समय है।।
तो जैसा कि हम सब यह जानते हैं कि कृष्णानंद ने एक नहीं दो सत्री का भोग लगाकर संभोग रूप में वासना का आहार किया और उसके अनुसार ही वो अपनी सजा की अवधि में अपनी सजा की अवधि के अनुसार अलग अलग योनि में भृमण करेगा यद्यपि जब उसका कर्म समाप्त नहीं हो जाता है।।
और यह दीर्घ आयु ही उसके लिए अत्यंत पीडनम् भवताह। किंतु सा सत्री लैसवी सा नायिका किम् अपराधा कुरूवनति।। सा रूहम् उजिताह सा कृषणानम् स्पर्शा भवतानि कितु वैशया कादामि यकीनाह सा रूहम् बेहकावनति सा वैशयम् महानवी भगतानि सा श्रीकृष्णनम् दासी भवन्तु।।
किंतु सा रूहम् फलम् सा माटी कलेषा कुरूवनति।।
#ज्ञानफरमान
उसे पहले अपने कर्मों का हिसाब -किताब नर्क में या फिर स्वर्ग जा देना पड़ता है।। और यहां सजा कर्मा के विधान पूर्वक मनुष अलग अलग योनि में जन्म प्रादान करता और ना ही उस योनि को यह पता की जन्म सजा या वरदान।। पहला जन्म की श्रेणी में उसे 🐺 भेड़िया की श्रेणी में योनी देने प्रावधान है। दूसरा जन्म में कुत्ते की श्रेणी में योनी मिलने का आश्वासन दिया गया है।🐶 तथा तीसरी श्रेणी में सियार चौथे जन्म में गिध बनता है।। पांचवें जन्म में शाप तथा छठवें जन्म में कौआ तथा सातवें जन्म में बगुला बनता है।। श्रीकृष्ण की सभा में दंड रूप जीवन पाकर योनि में जन्म लेकर अपनी मुकछ के आजीवन भृमण करना ही समय है।।
तो जैसा कि हम सब यह जानते हैं कि कृष्णानंद ने एक नहीं दो सत्री का भोग लगाकर संभोग रूप में वासना का आहार किया और उसके अनुसार ही वो अपनी सजा की अवधि में अपनी सजा की अवधि के अनुसार अलग अलग योनि में भृमण करेगा यद्यपि जब उसका कर्म समाप्त नहीं हो जाता है।।
और यह दीर्घ आयु ही उसके लिए अत्यंत पीडनम् भवताह। किंतु सा सत्री लैसवी सा नायिका किम् अपराधा कुरूवनति।। सा रूहम् उजिताह सा कृषणानम् स्पर्शा भवतानि कितु वैशया कादामि यकीनाह सा रूहम् बेहकावनति सा वैशयम् महानवी भगतानि सा श्रीकृष्णनम् दासी भवन्तु।।
किंतु सा रूहम् फलम् सा माटी कलेषा कुरूवनति।।
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