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बरसात और रौन्ग नंबर
#रॉन्गनंबर
बड़ी ज़ोर की बारिश हो रही थी। आसमान में बिजली कड़कड़ा रही थी पर घर पर बिजली गुल थी। तभी फोन की घंटी बजी और जीत ने रिसीवर उठा के कहा हैलो, कौन है? उधर से आवाज़ आई ओह, सॉरी, रॉन्ग नंबर, और फोन रख दिया गया। जीत को दो साल पहले की वो तूफानी रात याद आ गई। उस दिन भी तो भयंकर तूफान और तेज बारिश आई थीं।
मोबाइल भीग गया था। फिर भी कोशिश कर
अपने भाई का नंबर मिलाया, पर वह नहीं मिला।दस अंकों के नंबर में एक अंक पूरी कोशिश करने पर भी नहीं मिलता था।
वह हताश हो गया।
किसी तरह एक छप्पर के नीचे खड़े होकर पूरी रात बिताई। सुबह चार बजे बरसात कम होने पर वह घर आ पाया था। घटनाक्रम याद आते ही वह सिहर उठता था।
रांग नम्बर सुनते ही वह सहम गया।जीत को लगा कि कोई व्यक्ति विपदा में है। रात्रि के साढे बारह बज चुके थे। वह सोने की तैयारी करने लगा।
फिर से मोबाइल फोन की बैल की घंटी सुनाई दी।
हैलो,जीत ने कहा।
क्या आप संजय बोल रहे हो?
नहीं,मैं जीत बोल रहा हूं।
उसे यह आवाज जानी पहचानी लगी।
यह सुनयना की आवाज थी।
दो वर्ष पूर्व दोनों एम. ए.के अंतिम वर्ष में थे।
कालेज में बहुत ही विपरीत का आंकड़ा था,
दोनों ही मेधावी छात्र थे। वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा और वाद विवाद पर दोनों प्रसिद्ध थे।
सुनयना अब केन्द्र सरकार की ओर से वायु प्रदूषण पर शोध कार्य कर रही थी और जीत का वैज्ञानिक (प्रशिक्षु) के रूप में चयन हो गया था। उसे याद आया कि सुनयना ने अपनी दीदी की शादी पर उसे छ माह पहले निमंत्रित किया था। उसने वाटस ऐप पर शादी का कार्ड भेजा था। वह मोबाइल की ओर दौडा। मोबाइल से नम्बर लेकर उसने सुनयना के पिता को सूचित किया और उनका हाल पूछा। उस के पिता ने कहा, वह तो शाम ७ बजे से बाजार गई हुई है।। कुछ देर पहले घंटा घर से फ़ोन आया था।
सनन रह गया वह यह सुनकर। अपनी कार निकाली और घंटाघर की ओर चल‌ पड़ा ।
वहां पहुंच कर उसे कोई न मिला।
वह घबरा गया।पास ही बस स्टैंड था।
वह वहां चला गया। देखा,सुनयना एक बैंच पर बैठी है। उसने उससे पूछा,घर क्यों नहीं जा रही हो।
कोई उत्तर न पाकर वह घबरा गया। बहुत तेज बुखार से शरीर बेहद गर्म हो गया था।
वह उसे जल्दी से डाक्टर के पास ले गया।
जहां पर आई सी.यू. में उसे भर्ती करना पड़ा।
उसने उसके माता पिता को भी सूचित किया। सुनयना अपने पिता की अकेली संतान थी।
पिता जी गठिया रोग से पीड़ित थे।
चलने से लाचार थे।
किसी तरह शीघ्र हौस्पिटल आये। तीन दिन बाद हौस्पिटल से छुट्टी दे दी गई।
समय पर इलाज मिलने पर सुनयना शीघ्र ठीक हो गयी।
उसके पिता ने जीत का आभार व्यक्त किया और कहा कि समय रहते इलाज न मिलने से
कोई अनहोनी हो सकती थी। सुनयना ने भी जीत का हार्दिक धन्यवाद किया।
c@mere ehsaas