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दीया और बाती
चावल के आटे का दीपक (दीया और बाती)
शहर में कितनी तन्हाई है इस बात से तो कोई भी अंजान नहीं है।
आज किसी के पास किसी के लिए वक्त नहीं है फिर चाहे वो अपने हो या पराए।। दुनिया में भीड़ तो बहुत हैं मग़र हर शख्स यहां अन्दर से तन्हा बहुत हैं। रात हो या दिन सिर्फ तन्हाई ही तन्हाई है।ऐसे में मेरा मन यूं ही बैठे बैठे कई बार अपने गांव का चक्कर लगा आता है। और ये जब भी गांव की सैर पे जाता है कुछ ना कुछ अपने साथ जरूर लाता है। आज भी कुछ बहुत ही स्पेशल और यूनिक लाया है।
जब हम छोटे थे तो शाम को जब मम्मी और दादी रोटियां बना रही होती थी तो मैं भी वहां पहुंच कर मैं भी बनाऊंगी रोटी मैं भी बनाऊंगी करते हुए जिद्द पकड़ कर बैठ जाती थी।
मम्मी मना करती थी तुम्हारे हाथों पे आटा चिपक जाएगा। और फिर तू मुझे परेशान करेंगी। किंतु दादी थोड़ा सा आटा...