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मौत का डर नहीं
मौत का डर नहीं रहता अब
पर सम्मान का बोझा लिए जरूर घूम रहा हूं।
इस सम्मान का मोल बहुत ज्यादा आंक लिया है।
इसका भार उम्र के साथ बढ़ता गया
और साथ साथ जाने का डर भी है।
मौत का डर नहीं अब।

प्रलाप बहोत है मिथ्या का
सत्य खुलने का डर जो बना रहता है
मुक्त हो जाऊं इन मिथ्याओं से तो हल्का लगे
डर इस प्रतिस्पर्धा का है जो अपने चरम पर है
इसका भी सम्मान से ही जोड़ जान पड़ता है
बाकी मौत का डर तो नही है।

ज्ञानी महाज्ञानी बातें बड़ी बड़ी बता गए
की मृत्यु ही परम सत्य है
और एक दिन आनी ही है
मौत के डर से आत्महत्याएं तो नही होती
जरूर कोई बड़ा डर समाज को जकड़े है
इस बहरूपिए माया निर्मित सम्मान का ही जंजाल है

एक घबराहट सी घर कर गई है समाज में
खास कर शहरों में
कहीं उन्हें पता न चल जाए की मैं सब नही जानता
मेरा सम्मान चला जाएगा
और यही तो है मेरा दाना पानी
बाकी मरने का कोई खास गम नहीं है मुझे

अब सम्मान की इच्छा निकाल फेंके भी तो कैसे
हमारे मौलिक संरचना का हिस्सा बन गया है
कई बार तो शिष्टता का श्रोत है समाज के लिए
और कुछ कर जाने का जुनून भी
रोटी कपड़ा मकान की श्रेणी ले ली है इसने
अब मरने से ज्यादा इसके जाने का ही गम है

© अंकित राज 'रासो'

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