एक रूहानी प्रेमकहानी
ये रचना तब की है,जब लिखना शुरू ही किया था...जैसे माता पिता को अपने पहली संतान से विशेष प्रेम होता है,मुझे भी इस कहानी से कुछ वैसा ही लगाव है। बस इसीलिए आपके सम्मुख इस रचना को प्रस्तुत करने का लोभ संवरण नहीं कर पाया।हाँलाकि, दूसरे मंचों पर मैं इसे पहले भी प्रकाशित कर चुका हूँ, फिर भी आशा रखता हूँ कि इसे आप यहाँ भी अपना प्यार देंगे🙏
#एक_रुहानी_प्रेमकहानी
एक प्रेमकहानी....जिसमें प्रेम है, विश्वास है,समर्पण है, और निश्चित रूप से प्यार में शिद्दत भी है ।
नायक और नायिका दोनों एक दूसरे से बेपनाह प्यार करते है। प्यार का इजहार कर दोनों अपने प्रेम की पुष्टि भी कर चुके हैं। नायक व नायिका दोनों जानते है कि अमीरी गरीबी ऊँच नीच , जाति व समाज की कई दीवारें हैं , जो उन दोनों को मिलने नहीं देंगी। इसीलिए नायिका, नायक से कहीं दूर चल कर अपनी दुनिया बसाने के लिए कहती है ,जहाँ उन्हें कोई नहीं जानता हो .....
प्रथम अध्याय~दर्द का पहला हिस्सा 💞
योजनानुसार , नायिका रेलवे प्लेटफार्म पर
नायक का इंतजार करती है।जब नायक
नियत समय पर नहीं पहुँचता ,और उसकी
ट्रेन का अनाउंसमेंट हो जाता है.....तब नायिका के मन में नायक के प्रति अविश्वास और संशय का भाव उत्पन्न होता हैं .....
समर्पित प्रेयसी -
हाँ माँगा तो था तुमसे ,मैंने साथ तुम्हारा ,
बहुत जरूरी भी था मेरे लिए ...
तब कहाँ पता था कि... जिस फैसले को
जीवन मानने में मुझे लगे थे मात्र कुछ पल.....
तुम उसका निर्णय लेने में इतना वक्त ले लोगे
दिल में ख्याल ही तो नहीं आया कि,
मेरे इस सवाल का जवाब
इनकार भी हो सकता है....!
आता भी कैसे ?
मैं तो स्वयंसाक्षी रही सदा तुम्हारी दिवानगी की .....
कैसे मानती कि ,वो तुम्हारा प्यार नहीं
.......कोई छल है ,
इतनी शिद्दत से कोई
छल कैसे कर सकता है....?
मुझे अब भी यकीन है कि , वो छल नहीं था...
पर फिर ...इतना वक्त क्यूँ लगा तुम्हें ,जवाब देने में ?
मेरा सवाल इतना मुश्किल तो नहीं था !!
मेरी एक झलक देखने के लिए....
तुम्हारा वो ,मेरे कॉलेज खुलने से काफी पहले ..... मन्नु की थडी पर.....
इंतजार में बैठे रहना ....
मेरे लिए अटूट चाहत का प्रमाण ही तो था ...
मैं कॉलेज की खिडकी से झाँक कर जब भी देखती ,-
हर बार तुम वैसे ही,तपती धूप में घंटों बाइक पर बाहर बैठे....
किसी तपस्वी से ही तो नजर आते थे!
मैं मन ही मन सोचा करती थी....
कहीं इस विश्वामित्र की तपस्या
कोई मेनका भंग ना कर जाए ...!
सहेलियाँ मजाक करने लगी ,
तुम पर खीज भी आती तो कभी ,
बड़ा प्यारा सा अहसास भी होता .......
अपने विशेष होने की बडी
सुखद अनुभूति होती थी ....
पर जब तुम दिखाई नहीं देते ....
तो एक डर घेर लेता था मुझे!
सबसे कीमती और प्यारी वस्तु के लुट जाने का डर...
उस दिन भी तो मैं ऐसे ही डर गई थी....
मेरे क्लासरूम की खिड़की से कॉलेज के
बाहर का नजारा स्पष्ट नजर आ रहा था।
मैंने उस रोज देखा था कि, कैसे पागलों की तरह तुम उस गुंडे से भिड़ गए थे ,
जिसने कॉलेज गेट पर मेरे साथ बदतमीजी की थी।
और उसके बाद वो गुंडा अपने बदमाश साथियों को लेकर आ गया ,
बहुत चोट आई थी तुम्हें .....हाँ ,उस दिन
तुम्हारे शरीर पर लगती चोटों का दर्द मैंने भी सहा था !
उसके बाद जब दो दिन तक तुम नजर नहीं आए,
तब मैं अपने आप पर काबू कैसे रखती ....
तुम्हारे दोस्तों से तुम्हारा पता लेकर ,लोकलाज को छोड़कर....
तुम्हारे घर दौडी...
#एक_रुहानी_प्रेमकहानी
एक प्रेमकहानी....जिसमें प्रेम है, विश्वास है,समर्पण है, और निश्चित रूप से प्यार में शिद्दत भी है ।
नायक और नायिका दोनों एक दूसरे से बेपनाह प्यार करते है। प्यार का इजहार कर दोनों अपने प्रेम की पुष्टि भी कर चुके हैं। नायक व नायिका दोनों जानते है कि अमीरी गरीबी ऊँच नीच , जाति व समाज की कई दीवारें हैं , जो उन दोनों को मिलने नहीं देंगी। इसीलिए नायिका, नायक से कहीं दूर चल कर अपनी दुनिया बसाने के लिए कहती है ,जहाँ उन्हें कोई नहीं जानता हो .....
प्रथम अध्याय~दर्द का पहला हिस्सा 💞
योजनानुसार , नायिका रेलवे प्लेटफार्म पर
नायक का इंतजार करती है।जब नायक
नियत समय पर नहीं पहुँचता ,और उसकी
ट्रेन का अनाउंसमेंट हो जाता है.....तब नायिका के मन में नायक के प्रति अविश्वास और संशय का भाव उत्पन्न होता हैं .....
समर्पित प्रेयसी -
हाँ माँगा तो था तुमसे ,मैंने साथ तुम्हारा ,
बहुत जरूरी भी था मेरे लिए ...
तब कहाँ पता था कि... जिस फैसले को
जीवन मानने में मुझे लगे थे मात्र कुछ पल.....
तुम उसका निर्णय लेने में इतना वक्त ले लोगे
दिल में ख्याल ही तो नहीं आया कि,
मेरे इस सवाल का जवाब
इनकार भी हो सकता है....!
आता भी कैसे ?
मैं तो स्वयंसाक्षी रही सदा तुम्हारी दिवानगी की .....
कैसे मानती कि ,वो तुम्हारा प्यार नहीं
.......कोई छल है ,
इतनी शिद्दत से कोई
छल कैसे कर सकता है....?
मुझे अब भी यकीन है कि , वो छल नहीं था...
पर फिर ...इतना वक्त क्यूँ लगा तुम्हें ,जवाब देने में ?
मेरा सवाल इतना मुश्किल तो नहीं था !!
मेरी एक झलक देखने के लिए....
तुम्हारा वो ,मेरे कॉलेज खुलने से काफी पहले ..... मन्नु की थडी पर.....
इंतजार में बैठे रहना ....
मेरे लिए अटूट चाहत का प्रमाण ही तो था ...
मैं कॉलेज की खिडकी से झाँक कर जब भी देखती ,-
हर बार तुम वैसे ही,तपती धूप में घंटों बाइक पर बाहर बैठे....
किसी तपस्वी से ही तो नजर आते थे!
मैं मन ही मन सोचा करती थी....
कहीं इस विश्वामित्र की तपस्या
कोई मेनका भंग ना कर जाए ...!
सहेलियाँ मजाक करने लगी ,
तुम पर खीज भी आती तो कभी ,
बड़ा प्यारा सा अहसास भी होता .......
अपने विशेष होने की बडी
सुखद अनुभूति होती थी ....
पर जब तुम दिखाई नहीं देते ....
तो एक डर घेर लेता था मुझे!
सबसे कीमती और प्यारी वस्तु के लुट जाने का डर...
उस दिन भी तो मैं ऐसे ही डर गई थी....
मेरे क्लासरूम की खिड़की से कॉलेज के
बाहर का नजारा स्पष्ट नजर आ रहा था।
मैंने उस रोज देखा था कि, कैसे पागलों की तरह तुम उस गुंडे से भिड़ गए थे ,
जिसने कॉलेज गेट पर मेरे साथ बदतमीजी की थी।
और उसके बाद वो गुंडा अपने बदमाश साथियों को लेकर आ गया ,
बहुत चोट आई थी तुम्हें .....हाँ ,उस दिन
तुम्हारे शरीर पर लगती चोटों का दर्द मैंने भी सहा था !
उसके बाद जब दो दिन तक तुम नजर नहीं आए,
तब मैं अपने आप पर काबू कैसे रखती ....
तुम्हारे दोस्तों से तुम्हारा पता लेकर ,लोकलाज को छोड़कर....
तुम्हारे घर दौडी...