अधूरा (भाग II)
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स्वाती जा ही रही होती है कि ऋषभ उसके सामने आ खड़ा हो उसका रास्ता रोक लेता है। स्वाती के दोनों हाथों को पकड़ अपने दिल के पास रख बोलता है "आज तुम इस दिल को छोड़ कही नहीं जाओगी। बहुत रो लिया ये तुम्हारे लिए, अब और नहीं। (रोते हुए आवाज़ रुकती हुई) मैं... मैं... अब तुम्हें कही जाने नहीं दूंगा, साया बन के साथ चलूंगा, तुम अलग हो कर दिखाओ।" (स्वाती की ओर देख नम आंखों के साथ, हल्की मुस्कान से कहता हुआ)।
ये सब सुन स्वाती बिल्कुल सुन्न खड़ी रहती है जैसे उसमें प्राण ही नहीं। ऋषभ का प्यार ही तोह उसकी ज़िंदगी था। "नहीं, नहीं, नहीं, स्वाती, तू ऐसे नहीं रह सकती, मत कर ऐसा, भाग जा यहां से जैसे आज तक ज़िंदगी से...
स्वाती जा ही रही होती है कि ऋषभ उसके सामने आ खड़ा हो उसका रास्ता रोक लेता है। स्वाती के दोनों हाथों को पकड़ अपने दिल के पास रख बोलता है "आज तुम इस दिल को छोड़ कही नहीं जाओगी। बहुत रो लिया ये तुम्हारे लिए, अब और नहीं। (रोते हुए आवाज़ रुकती हुई) मैं... मैं... अब तुम्हें कही जाने नहीं दूंगा, साया बन के साथ चलूंगा, तुम अलग हो कर दिखाओ।" (स्वाती की ओर देख नम आंखों के साथ, हल्की मुस्कान से कहता हुआ)।
ये सब सुन स्वाती बिल्कुल सुन्न खड़ी रहती है जैसे उसमें प्राण ही नहीं। ऋषभ का प्यार ही तोह उसकी ज़िंदगी था। "नहीं, नहीं, नहीं, स्वाती, तू ऐसे नहीं रह सकती, मत कर ऐसा, भाग जा यहां से जैसे आज तक ज़िंदगी से...