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✍️इंसान क्या सोचता है, क्या खोता है, और क्या पता है..!!
इंसान क्या सोचता है, क्या खोता है,
और क्या पता है,
ये इंसान के सोच से बहुत ज्यादा परे हैं।।

अक्सर जिंदगी के भीड़ के तन्हाइयों में,
किसी ना किसी को रोते देखा हैं।।

ये कैसी तहजीब है, जिंदगी की,
जिसे हद से ज्यादा चाहो,
रुलाता वही बहुत है, उस भीड़ में।।

हमने इस जिंदगी को बहुत जिया,
अब जीने की अब इतनी इच्छा नहीं रह गई
जिसमे हर गम हर दर्द हर आंसू बेइंतहा छिपे हो।।

आज एक बार फिर गम से,
इस तन्हाई को दूर किया
जीने की मुश्किल को कम करने की कोशिश किया।।

शब्द तो बहुत है, कुछ कह जाने के लिए,
अब मन नहीं करता कुछ लिखने के लिए,
कुछ कहने के लिए कुछ गुनगुनाने के लिए,
बस चुप सा रहता है, या मन,
ना बताने के लिए ना गम छुपाने के लिए।।

इंसान क्या सोचता है, क्या खोता है,
और क्या पता है..!!
© ✍️अधूरी जिंदगी कुछ शब्द