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आत्म संगनी और रूहानियत का रिश्ता
यूं तो हमारी मोहब्बत को तीन साल होने को थे,इन तीन सालों में हमारे रिश्ते ने विभिन्न आयाम देखे। हमारे बीच जन्मा एक अनजाना रिश्ता अब एक मुकम्मल रिश्ता बन चुका था। इस दरमियान हमारी एक शानदार मुलाकात ने इस रिश्ते की गहराई को और मजबूती प्रदान कर दी थी। मगर जु जू हमारा रिश्ता मजबूती की ओर बढ़ रहा था वैसे वैसे आत्म संगनी का मेरे प्रति लगाव पागलपन का रूप धारण कर चुका था। मेरे प्रति उसको अब असुरक्षा की भावना ने घर कर लिया था। वह अब मुझे अपनी निजी संपत्ति समझने लगी थी,किसी अन्य की मेरी जिंदगी में इंट्री उसको नागवार गुजरती थी,टिपिकल वाइफ की भांति उसका मुझसे झगड़ना,रखना,आरोप लगाना,ओर फिर अपनी गलती पर अफसोस कर माफी मांगना अब आम बात हो गई थी। उसका मेरे लिए आंसू बहाना,तड़पना,सिसकना भी बदस्तूर जारी था ।
आत्म संगनी का मेरे प्रति अटूट विश्वास,समर्पण हमारे रिश्ते को और जटिलता प्रदान कर रहा था। जब तक हम मिले नही थे तब तक उसको मुझसे मिलने की आस थी,जब मिल गए तो यह आस प्यास में तब्दील हो गई।अब और मिलने और मिलते जाने की शिद्दत से आरजू उसको मेरा दीवाना बनाए जा रही थी।
मेरे आगोश की तलब,उसे दीवाना बना रही थी,जबकि यह मुमकिन नहीं था हमारे बीच हजारों मील की दूरी,मजबूरी आड़े आ रही थी,मगर एक समर्पित पत्नी की तरह मेरी आत्म संगनी वो पूरे व्रत मेरे लिए रख रही थी जो एक भारतीय नारी अपने पिया की लंबी उम्र के उसकी तरक्की,उसकी सुरक्षा के लिए करती है। उसका समर्पण,स्नेह और उतावलापन मुझे मुझसे जुदा कर रहा था।उसकी मेरे प्रति भक्ति देखकर राधिका और कृष्ण का प्रेम भी कम लगने लगा था। मीरा की तरह मेरे प्रति दीवानगी,सीता की तरह पति के प्रति समर्पण और राधिका की तरह वात्सल्य मुझे मंत्रमुग्ध किए जाता था। उसके प्रेम को पाकर मैं धन्य था।
मेरी आत्म संगनी .......











© Dr.SYED KHALID QAIS