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ग्रहण
ग्रहण
उमा ने घर से भाग कर शादी की थी ।जिस वजह से ना तो उसका कोई मायके में मान सम्मान करता था और ना ही ससुराल में उसका कोई स्थान ही था ।
पढ़ी-लिखी अच्छे खानदान की होने के बावजूद भी लोग कुलक्षिणी उल्टा वैश्य और न जाने क्या-क्या नाम से उसे बुलाते थे और अड़ोस-पड़ोस वाले तो अपने बच्चों को उससे दूर ही रखते थे ।हालांकि स्वभाव की बुरी नहीं थी उमा! बस प्यार मोहब्बत के चक्कर में पड़ कर अपनी इज़्ज़त अपना अस्तित्व दांव पर लगा बैठी थी ।मायके में माता-पिता ने तो उससे अपना रिश्ता तोड़ ही दिया था। ससुराल में भी ननद देवर और साथ ससुर उसे बेइज्जत करने में और घर से बाहर निकलने में कोई कसर नहीं रहने देते थे। पर उमा भी तो सहनशीलता की मूरत ही थी। कोई उसे कितना भी कुछ कह ले वह किसी को कभी पलट कर जवाब नहीं देती थी ।बस चुपचाप अपने कर्तव्य का पालन करती हुई जीवन निर्वाह कर रही थी ।शादी के कई साल बाद भी घर में उसकी कोई अहमियत नहीं थी। वो जिए या मरे उससे उसके पति को छोड़कर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था ।अब तो नंद और देवर का भी ब्याह हो गया था। नंदोई और देवरानी के सामने भी सासू मां ताना देने से बाज नहीं आती थी ।उसे यह कह कर चुप करा देती थी कि तुम तो चुप ही रहो भाग कर आई हो और जुबान चलती हो..!बड़ी-बड़ी बातें करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती है ।बेबस खड़ी उमा लाज के मारे वही जमीन में गड़ जाती थी।पर कभी पलट कर जवाब नहीं देती थी। एक दिन उसके नंदोई ने कहा भाभी आप क्यों इतना अपमान सहती हो...??आप जवाब क्यों नहीं देती है ..??
क्या बोलूं ननदोई जी, मैंने कर्म ही ऐसे किए हैं कि ..!
भाभी प्यार करना कोई जुर्म नहीं है ।आपने कोई गलत काम नहीं किया है...! जानती हूं ,पर क्या करूं ...??मेरे चरित्र पर जो भगोरी का ग्रहण लगा हुआ है ।उसे कैसे मिटाऊं ..??ये सारी बातें चल ही रही थी कि अचानक उमा की सास को चक्कर आया और वो गिर पड़ी ..!
जब उन्हें होश आया तो वह अस्पताल में थी ।डॉक्टर ने बताया उनकी दोनों किडनियां फेल हो गई है ।अगर जल्द ही इनका इलाज शुरू नहीं किया गया तो कुछ भी हो सकता है। घर में कोई भी अपनी किडनी देने के लिए तैयार नहीं हुआ और बाहर कहीं किडनी डोनर मिल नहीं रहा था । अपनी सासु मां की ऐसी हालत उमा से देखी नहीं जा रही थी। उसकी सांस पल पल जिंदगी से दूर और मौत के करीब जा रही थी। उमा ने डॉक्टर से कहा डॉक्टर साहब आप मेरी किडनी मां जी को लगा दीजिए ।मैं उनकी बहू हूं ।उमा की किडनी उसकी सांसों मां की कितनी से मैच हो गया और डॉक्टर ने बिना एक भी पल गंवाए उनका इलाज शुरू कर दिया और ऑपरेशन भी सफल रहा ।अब उमा की सास पहले से काफी अच्छा महसूस कर रही थी ।जब उन्हें पता चला कि उनकी बहू ने ही उनकी अपनी किडनी देकर उनकी जान बचाई हैं।तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगे और उन्होंने उमा से मिलने के लिए डॉक्टर से अनुग्रह किया ।डॉक्टर की इजाज़त पाकर नर्स ने उन्हें उमा से मिलवाने ले गई ।
अपनी बहू से हाथ जोड़कर उन्होंने माफी मांगी और कहा तुम मेरे घर की लक्ष्मी हो ,तुम मेरी जीवनदायनी हो ।मैं तुम्हारे साथ कितना बुरा बर्ताव किया। मग़र फिर भी तुमने अपनी जान जोख़िम में डालकर मेरी जान बचाई। तुम धन्य हो ,उमा तुम भगोरी नहीं बल्कि मेरा भाग्य हो। अपनी सास की बातें सुनकर उमा की आंखें नम हो गई। और कहा इस पल का के लिए ना जाने मैंने कितना इंतजार किया है। आज यह भगोरी नाम का ग्रहण मेरे माथे से मिट गया ।आंखें बंद करके उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद का किया और हंसी-खुशी अपनी सास की सबसे लाडली बहू बन कर रहने लगी..!!
किरण