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आखिरी सम्मान
अगरबत्ती की खुशबू पूरे कमरे में फैली हुई थी और माहौल को हल्का करने की कोशिश कर रही थी। पर बीच -बीच में बच्चों का करुण क्रंदन उस माहौल को और ज़्यादा गमगीन बना रहा था। उनकी चीखें सुन कर वहां मौजूद हर इंसान उनका दर्द महसूस कर पा रहा था। चौबीस साल की कियारा बिल्कुल शांत भाव से अपनी मां को एकटक देखे ही जा रही थी और बीच में अपनी मां के माथे को हल्के से चूम लेती थी। लेकिन इक्कीस साल का आरव रोते हुए भी हिंसक नज़रों से अपने पिता रोहित को घूरे जा रहा था जैसे पूछना चाह रहा हो कि अब तो मिल गई आपको शांति ?

रोहित आरव की क्रोधित नज़रों से बचता हुआ बार-बार अपनी मृत पत्नी मीरा को देखने का भरसक प्रयास कर रहा था मगर मीरा की मनपसंद अगरबत्ती का धुआं भी जैसे इसका विरोध करना चाह रहा था। रोहित के चेहरे पर शर्मिंदगी और पश्चाताप के भाव आ जा रहे थे । वह अपने आंसू छुपाने की बेहद कोशिश कर रहा था।

पत्नी मीरा के संग छब्बीस वर्षों का सफर आज यहां खत्म हुआ पर आज कहां? वह तो ग्यारह वर्ष पहले उस दिन ही खत्म हो गया था जब रोहित ने पहली बार मीरा के चरित्र पर लांछन लगाया था। उस अपमानजनक दिन के बाद मीरा जैसे एक चलती फिरती लाश बन गई थी। हंसना, मुस्कुराना, चहचहाना तो जैसे भूल ही गई थी बस यंत्रवत काम करती रहती थी।

“ये सब्जी वाला क्या कह रहा था तुझसे ?” गुस्से में सांप की भांति फुफकार रहा था रोहित।
मीरा घबराते हुए बोली थी, “क... क ... कुछ भी तो नहीं? वो तो पूछ रहा था कि मंडी से और कोई फ़ल तो नही चाहिए।”

“सब समझता हूं मैं कि ये यहां कुछ बेचने नहीं आता बल्कि तुझसे आंखें चार करने आता है -गुस्से से खौलता हुआ रोहित बोला। तेरे और इसके बीच में जरूर कोई चक्कर चल रहा होगा।”

मीरा मानों आसमान से जमीन पर आ गिरी।

"यह आप क्या कह रहे हैं... मैं और सब्जीवाले के साथ.... छी.... छी... आप ने ऐसा सोचा भी कैसे?"

पर रोहित की अक्ल पर तो जैसे पत्थर पड़ गए थे। कुछ भी सुनना समझना नही चाहता था वो। छत्तीस साला मीरा के चेहरे पर जैसे किसी ने अपमान की कालिख पोत दी थी। वो समझ ही नही पा रही थी कि क्या सच में उसके कानो ने इतनी घटिया बात सुनी थी।

रोहित और मीरा की अरैंज्ड मैरिज हुई थी। रोहित औसत रंगरूप का युवक था और मीरा गोरी, पढ़ीलिखी, आत्मविश्वासी, घरेलू और खुशमिजाज युवती थी।

रोहित मीरा को ले कर न सिर्फ़ पजेसिव था बल्कि कोई भी एक नजर मीरा को देख ले या उसकी तारीफ़ कर दे तो उसे कतई बरदाश्त नहीं था। उसी पल से उस पर शक का भूत सवार हो जाता था।

बच्चो के कमरे का पंखा खराब हो गया था और स्कूल जाते वक्त वो मीरा को याद दिला गए थे कि आज प्लीज़ हमारे कमरे का पंखा ठीक करवा देना मां। मीरा ने इलेक्ट्रीशियन को फोन करके...