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तन-मन पे ठहरा : प्रेम न गहरा
प्रश्न:
प्रेम का वो कौन का रूप है, जो दिखता तो सामान्य है, पर उसका अर्थ बहुत गहरा होता है?
उत्तर:
✍🏼 एकनिष्ठ पति-पत्नी के बीच  समागम के रूप में अभिव्यक्त हुआ प्रेम,

प्रेम का वह रूप है,

जो दिखता तो सामान्य है,

क्यों कि- समागम जनन हेतु अपनाई जाने वाली केवल एक प्राकृतिक युक्ति है।
यह सभी जानवरों में अभिव्यक्त हुई है।

पर मनुष्य के संदर्भ में-

उसका अर्थ बहुत गहरा होता है।

क्यों कि- मनुष्य में समागम केवल संतति-जनन तक सीमित नहीं है।

यदि पति-पत्नी आध्यात्मिक साधक की तरह, समागम को यज्ञ-रूप मानकर, आत्म-स्तर पर इकदूजे में समर्पित होते हुए, समागम में उतरें, तो मुक्ति (salvation) का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

लेकिन अभी समाज में वैवाहिक संबंध केवल तन और मन के स्तर पर ही बन रहे हैं, अतः समागम का उपरोक्त आदर्श गिने-चुने आत्म-रत युगल ही हासिल कर पाते हैं।

आत्म-स्तर पर संबंधित होना ही, वैवाहिक संबंधों का भावी उद्विकास है।
तब युगल परस्पर आत्म-मित्र होंगे, पति-पत्नी नहीं।

बच्चे भी ईश-पुत्र होंगे, निजी नहीं।

और तभी समागम द्वारा मोक्ष के द्वार खुलेंगे।
अर्थात्
मनुष्य समागम को पर-जनन से स्व-जनन की दिशा में उठाने हेतु समर्थ हो जाएगा।