मैं ऊब गई हूँ
सुनो,
कैसे हो..?
छोड़ो.. मत बताओ!
क्योंकि 'ठीक हूँ।' यह झूठ मुझसे मत बोलो।
तुमसे कुछ पूछना है मुझे..
क्या कभी तुमने यूँ ही बेवजह घण्टों दीवार को देखा है..?
क्या महीनों तक तुम घर पर ही रह सकते हो बिना किसी मनोरंजन के..?
मेरे सवाल तुम्हें अटपटे लग रहे हैं ना..!
मुझे भी ऐसे ही बड़ा अटपटा सा लगता है.. मेरा सवाल नहीं बल्कि मेरा स्वभाव।
....
मैं अब जीना नहीं चाहती..!
हाँ तुमने सही पढ़ा.. मैं ऊब चुकी हूँ.. खुद से!
लोग अच्छे हैं, बस मुझे नहीं लगते!
जीवन की ख़ूबसूरती अब नज़र नहीं आती।
जैसे...
कैसे हो..?
छोड़ो.. मत बताओ!
क्योंकि 'ठीक हूँ।' यह झूठ मुझसे मत बोलो।
तुमसे कुछ पूछना है मुझे..
क्या कभी तुमने यूँ ही बेवजह घण्टों दीवार को देखा है..?
क्या महीनों तक तुम घर पर ही रह सकते हो बिना किसी मनोरंजन के..?
मेरे सवाल तुम्हें अटपटे लग रहे हैं ना..!
मुझे भी ऐसे ही बड़ा अटपटा सा लगता है.. मेरा सवाल नहीं बल्कि मेरा स्वभाव।
....
मैं अब जीना नहीं चाहती..!
हाँ तुमने सही पढ़ा.. मैं ऊब चुकी हूँ.. खुद से!
लोग अच्छे हैं, बस मुझे नहीं लगते!
जीवन की ख़ूबसूरती अब नज़र नहीं आती।
जैसे...