रमणी।
प्रकृति ने गढ़ा है दामन उसका
भरने को क्षुधा उसके शिशु का
छुपाती है उसे अंग वस्त्र से अपने
नाम दिया जग ने लज्जा
क्या कृति है ईश्वरीय
लज्जा विषयक या सौंदर्य
खींचती हुई सांसारिक आकर्षण
कभी कुंती निगाहें तो कभी मातृत्व सदृश
जीवन अमृत आंचल में लिए
तो किसी के लिए प्रेम
उरोज में
सबकी निगाहें अपनी सी
क्या शिशु, क्या यौवन
सभी का आपने सा आकर्षण
तय दायरे के भीतर
उसका स्वीकार और समर्पण
जीवन और प्रेम के अंकुर को
सींचती हुई
अनुपम कृति है
हां कभी अप्सरा है कभी प्रियतमा है
कभी दिति तो कभी मां है
© geetanjali
भरने को क्षुधा उसके शिशु का
छुपाती है उसे अंग वस्त्र से अपने
नाम दिया जग ने लज्जा
क्या कृति है ईश्वरीय
लज्जा विषयक या सौंदर्य
खींचती हुई सांसारिक आकर्षण
कभी कुंती निगाहें तो कभी मातृत्व सदृश
जीवन अमृत आंचल में लिए
तो किसी के लिए प्रेम
उरोज में
सबकी निगाहें अपनी सी
क्या शिशु, क्या यौवन
सभी का आपने सा आकर्षण
तय दायरे के भीतर
उसका स्वीकार और समर्पण
जीवन और प्रेम के अंकुर को
सींचती हुई
अनुपम कृति है
हां कभी अप्सरा है कभी प्रियतमा है
कभी दिति तो कभी मां है
© geetanjali