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" चबूतरा "
राजस्थान के धौलपुर में बसें एक छोटे से गाँव की कहानी है ये,यहाँ स्त्रियों का जीवन तो आधे समय पानी भरने और पर्याप्त कोष करने में ही व्यतीत हो जाता है।
पानी भरने के इसी दिनचर्या के दौरान सभी स्त्रियाँ कुछ देर सुस्ताने और एक दूसरे का दर्द भी बांट लेतीं,तो कभी किसी की चुगली भी कर लेतीं।
मंजरी,श्यामली और सुखी ऐसी ही तीन सखियाँ थी
तीनों की सांस अति कट्टर और सख्त थी।
घर बाहर निकलने का सुख क्या होता है तीनों ही इस बात से विमुख थीं क्योंकि सारा समय तो उनके गृह कार्य में ही व्यतीत हो जाता था,बस सुबह जब तीनों पानी भरने निकलतीं थी तो यही चबूतरा तीनों के कुछ क्षणों के आनन्द का साक्षी होता।
उसी गाँव का एक मनचला युवक था शंभु,सुन्दर स्त्रियाँ उसकी कमजोरी थी।
एक बार उसनें मंजरी को क्या देख लिया बस उसी पर मर मिटा था। उसकी बड़ी कजरारी आँखे और सुडौल काया का वह दीवाना था,मंजरी उसे कोई भाव नहीं देतीं थी मगर वो भंवरों सा उसके आगे पीछे मंडराता था।
एक साल पहले ही उसनें गाँव की एक स्त्री की अस्मत लूटने का प्रयास किया था,परन्तु गाँव के सरपंच का बेटा होने के नाते हमेशा बच जाता था।
एक दिन जब मंजरी छत पर कपड़े सुखाने गई तब उसनें उसे देख लिया,और मंजरी जब नीचे गायोँ को चारा देने नीचे आई तो वह झट उसके करीब जा पहुँचा और मंजरी का हाथ पकड़ते हुए चेहरे पर मुस्कान सजा कर बोला " सुन एक रात के लिए मेरी हो जा अपने पति को भूल जायेगी "
मंजरी के तन बदन में आग सी भड़क उठी और उसनें उसी समय ठान लिया कि अब इसको तो सबक सिखाना पड़ेगा।
दूसरे दिन उसनें अपनी सखियों को सारा वृतांत कह सुनाया,तीनों ने ही फैसला लिया कि अब शंभु का फैसला हम लोग करेगें।
एक दिन की बात है गाँव की एक लड़की की अस्मत किसी ने खराब किया और उसनें कुआँ में छलांग लगा कर आत्महत्या कर लिया,बाद में पता चला ये कांड भी शंभु का ही था,फिर पंचायत बिठाई गई मगर फैसला वही हुआ जो अब तक होता आया था,शंभु इस बार भी फारिग हो गया।
कुछ दिनों बाद गाँव से थोड़े दूर पर एक मेला लगा,सब लोग सज धज कर उसी मेले में जा रहे थे।
मंजरी,श्यामली और सुखी भी संजी संवरी घर से बाहर निकलीं जब शंभु ने तीनों को इतना संवरे हुए देखा तो उसकी आँखे चौधियां गई विशेष कर वह मंजरी से तो नजरें ही नहीं हटा पा रहा था,तभी मंजरी हंसते हुए बोली क्यों शंभु साहब कहाँ खो गए तो शंभु झेप गया तो तीनों खिलखिलाती हुईं कुएँ की तरफ चल दी तो शंभु भी दीवानों सा तीनों के पीछे-पीछे चल दिया।
आज गाँव से बाहर मेला था हर कोई मेला देखने चल पड़ा और आधा गाँव ही खाली हो गया,तीनों ने इसी बात का फायदा उठाया और जो फैसला किया था बस उसे अंजाम देना बाकी था।
मंजरी शंभु को अपने नजदीक आते देखकर बोली,रोज इतनें लोगों के सामने मै तुझसे कुछ कह नही पातीं थीं मगर सच तो ये है कि"मै भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ " सुनकर शंभु अति प्रसन्न हुआ और उन तीनों के मध्य बैठ गया।
इधर तीनों ने आँखों ही आँखों में हामी भर दी , तभी श्यामली ने पीछे से कुछ शंभु को सुंघा दिया जिससे वो मूर्छित हो गया और उस मूर्छित अवस्था में ही तीनों ने उसे गहरे कुएँ में धकेल दिया और तीनों चिल्ला कर बोली तेरा यही अंजाम होना था शंभु।
आज सचमुच एक पापी को उसकी करनी की सजा मिल गई थी।

© Deepa