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अपनी अपनी मौज
*अपनी अपनी मौज*
मित्रों आज हम लोग तेजी से एकल परिवारों की ओर अग्रसर हो रहे हैं ।अब यदि कोई अपना संयुक्त परिवार बताता है तो ,लोग आश्चर्य से उसे देखते हैं और दो-चार राय अपनी भी देने में नहीं सकुचाते हैं । ऐसे ही एक संयुक्त परिवार के सदस्य जब, शहर में नए एकल परिवार में बसते हैं ,तब वह कैसा अनुभव करते हैं ।इस कहानी के माध्यम से यही बताने का प्रयास किया गया है ।उम्मीद है आप सभी इसे पसंद करें और अपने-अपने विचार कमेंट में अवश्य बताएं।
*अपनी अपनी मौज*

सेठ गोकुल प्रसाद और उनकी पत्नी भागीरथी देवी गांव में रहते हैं ,जो कि एक संयुक्त परिवार के मुखिया हैं ।उनके साथ उनके मां-बाप ,चार भाइयों का परिवार और उन सभी के बच्चे ,वे सभी साथ-साथ ही रहते हैं साथ-साथ काम करते-करते और कहीं पिकनिक पर भी साथ ही जाते हैं ।
छोटे भाई का बेटा गोपाल शहर में पड़ता है और वहीं नौकरी लग गया। समय पर शादी हुई तो कुछ महीनों बाद पत्नी को भी ले गया समय बीतता गया ।शहर में ही गोपाल के दो बच्चे जो कि एक लड़का और एक लड़की हुई और लगभग 10-12 वर्ष के हो गए।

यहां गांव में गोकुल प्रसाद के माता-पिता भी गुज़र गए मगर चारों भाई अभी साथ ही रहते हैं ।मां बाप के गुज़रने से गोकुल प्रसाद को बहुत दुःख हुआ ।उनका मन कहीं नहीं लग रहा था। वह सुबह-शाम मां के कमरे में बैठ आंसू बहाते रहते थे ।उनकी यह दशा उनके भाई राधेश्याम से ना देखी गई उसने शहर से बेटे गोपाल को बुलाया और कुछ दिनों के लिए अपने भाई और भाभी को उनके साथ शहर भेज दिया ।

शहर की पक्की सड़के और रात भी दिन की तरह जगमगाती हुई...