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व्यथा नारी के मन की
"नारी मन की व्यथा"

बुक्शेल्फ में कोई किताब ढूंढते ढूंढते अचानक सुधांशु के हाथ उसकी पत्नी लतिका की डायरी लग गई। वह मन ही मन बुदबुदाने लगा "ये तो लतिका की डायरी है। क्या लिखती होगी इसमें। रसोई घर की हिसाब किताब और क्या। कौन सी सब्जी लानी है, कौन सा राशन कम हो गया, महीने भर का खर्चा कितना है, यही सब होगा और क्या होगा।
जिज्ञासा वश सुधांशु ने डायरी खोली तो पहले पन्ने पर ही एक खूबसूरत सी कविता लिखी हुई थी। कविता का शीर्षक था 'नारी मन की व्यथा।' पूरी कविता उसने पढ़ ली। जैसे-जैसे कविता पढ़ता गया वह चमत्कृत होता गया। पहली कविता पढ़कर फिर पन्ना पलटा। उसमें भी एक कविता लिखी मिली। वह हर कविता पढ़ने लगा। लगभग चार-पांच कविता पढ़ चुका है। हर कविता में नारी मन की इच्छा, वेदना, मान अपमान का दंश लिखा हुआ मिला जो सुधांशु की हृदय को अंदर तक चीर गया। वह मन ही मन फिर सोचने लगा "लतिका के अंतस में इतनी भावना है, इतनी व्यथा छुपी हुई है, एक-एक शब्द से अंतस में दबी हुई भावना छलक पड़ती है। इतने सुंदर शब्दों का सही उपयोग किया उसने। मैंने तो...