...

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एक पुरुष की मन की व्यथा ......
मै एक पुरुष हूं, हा मै एक पुरुष हूं
जो चलता फिरता एक मुसाफिर हूं
हा अब मै बड़ा हो गया हूं
पैरो पे अपने खड़ा हो गया हूं
कल तक था इन हाथों में क्रिकेट का बल्ला
कल तक मै था कितना शर्मिला और झल्ला
घर का बोझ आज कंधे पर है
सारा ध्यान अब काम धंधे पर है
वक्त की परवाह ना थी कभी
उसी वक्त की है अब हर वक्त कम है
वक्त से ऑफिस पहुंचने की चिंता
वक्त से घर लौट आने की चिंता
ऑफिस ना पहुंचो तो बॉस की बक बक
घर ना पहुंचो तो बीवी को शक
बॉस और बीवी की हर दिन चिक चिक।
सुन सुन कर चिकना घड़ा हो गया हूं
हां अब मै बड़ा हो गया हूं
कभी स्वप्न रंगीन देखती थीआंखें
ख्वाबों में आती थी जो सुंदर परी
जाने कहा गुम अब वो हो गई
दोस्तों से होती नही अब चर्चा
जोड़ता रहता हूं अब राशन का पर्चा
पहली तारीख है जैसे ही आती
दूध वाले का बिल है अब बीबी थमाती
कभी टांग कर बस्ता जाते थे स्कूल
आज बच्चों को छोड़ कर आते है स्कूल
अंदर दिल है मोम सा पिघलता
बाहर से थोडा कड़ा हो गया हूं
बीबी कहती है घुमाते नही हो
बच्चे कहते है कुछ लाते नही हो
चाहता हूं घुमा दूं दुनियां के कोने
चहता हूं मांगा दूं मंहगे खिलौने
पर ये महंगाई रुला देती है
सारे किए वादे भुला देती है
घर का पूरा बजट बिगड़ जाता है
एक भी नोट फालतू जो उड़ जाते है
इच्छाएं ना पूरी कर पाती हैं
इसलिए सब से कतराता
घर वाले सोचते हैं कि अब क्या हो गया है
मै भी जानता हूं चिड़चिड़ा हो गया है।
हा अब मै खड़ा हो गया हूं
पैरों पे अपने खड़ा हों गया हूं

#kabchan Tripathi