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कालीकुर्सी
#कालीकुर्सी


भईया इस कुर्सी की क्या कीमत है बताना जरा। किस कुर्सी की, इसकी? पास पड़ी कुर्सी के तरफ़ इशारा करते हुए, नंद ने कहा। नंद इस दुकान में काम करने वाला एक मुलाज़िम है। तभी सरिता ने कहा नही भईया ये वाली नहीं, ये वाली तो मेरे बाबू को पसंद ही नहीं आएगी। उसकी पसंदीदा रंग काला है, मुझे वो वाली कुर्सी चाहिए। दूर पड़े शीशे के उस पार पड़ी आलीशान काली कुर्सी, किसी राजा की सिंहासन सी जान पड़ रही थी... नंद ने कहा, वो तो बहुत पुरानी है। कब से यहां है, ये तो मुझे भी नहीं पता। आप साहब से एक दफा बात करिए। यहां साहब का था मतलब दुकान का मालिक। जो अपनी कुर्सी पर बैठे, पैसे गिन रहा था और रजिस्टर में हिसाब लिख रहा था। तभी सरिता उनके कुर्सी तक पहुंचकर बोली जरा सुनिए ये काली कुर्सी कितने की है? और कितनी पुरानी हैं? साहब दुकान का मालिक जिसका नाम था विशाल‌। विशाल‌ सारा काम रोककर, उस कुर्सी की ओर देखने लगा और हिचकिचाया बोला कौन वाला मैडम। सरिता बोली वो उधर जो रखा है। और ये कैसा मुलाज़िम रखा है...