...

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जिजीविषा
उम्र ढल रही है आहिस्ता आहिस्ता
और सीखने की तलब सी लगी है
जुगत में लगे हैं और थोड़ा जाने
पर तन के सिलवटों की
कदमताल अब बढ़ चली है

मिल जाए कहीं से
कुछ तो ऐसा जानूं
जिंदगी को जानने की
ललक सी लगी है

उम्र ढल रही है आहिस्ता आहिस्ता
और सीखने की तलब सी लगी है

सीखता हूं मैं हर रोज वाबस्ता
रिस रही जिंदगी आहिस्ता आहिस्ता

खो रही है सांसे हर रोज प्रतिपल
ना जाने जिंदगी का क्या होगा प्रतिफल

हूं खुश इस बात से कि थोड़ा और करीब हूं
हां मैं जिंदगी की समझ में थोड़ा गरीब हूं

जितना भी जान पाया कम ही लगता है
कहीं न जान पाया ,गम भी लगता है

हर कदम ए जिंदगी ,नापता तुझको चला
तू उतनी ही लंबी लगी ,जितना जान सका

कुदरती होड़ पर, आज भी जुगत में हूं
ए जिंदगी तुझ को जानने की लत में हूं

उम्र ढल रही है आहिस्ता आहिस्ता
और सीखने की तलब सी लगी है


© geetanjali