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सरलता से सफलता तक: एक यात्रा माया की मंजिल तक
एक विकासशील शहर में एक महिला रहती थी जिनका नाम था "माया"। वह, एक ऐसी कवयित्री थी जो विवाद से बचाने वालें शब्दों की शक्ति को महत्व देने का पक्ष रखती थी। उसका प्यार पुस्तकों और लेखन के प्रति अतुल्य था। वह अपने दिनों को एक छोटे से पुस्तकालय में काम करके और अपनी शामें अपने विचारों और खूबसूरत कविताओं में वर्णित करके लिखकर गुजार रही थी।

माया ने कभी भी किसी से प्यार नहीं किया था, क्योंकि वह खुद के प्यार में लबालब हो चुकी थी, किसी अभिमानी तरीके से नही बल्कि ऐसे तरीके से जो उसे आत्मसंवाद और आत्म-विश्वास से भर सके। वह कभी किसी की निंदा नहीं करती थी, वह सभी प्रकार के लोगों को उचित सम्मान देती थी, और उसे उन सभी लोगों की परवाह थी जो उसके जीवन मार्ग से गुजरे।

उसके दिन एक शांत और स्थिरता में बीत रहे थे। वह जल्दी उठकर, अपनी छोटी सी दुकान खोलती थी, और अपने ग्राहकों का मंद मुस्कान के साथ स्वागत करती थी। वह अक्सर उन्हें उनके जीवन को बदलने और उनके हर दिन को उजाले से भरने रौशन वाली पुस्तकों की सिफारिश करती थी। जैसे-जैसे सूर्य की किरणें आसमान को नारंगी और गुलाबी रंगों में रंगती थीं, वह अपनी दुकान बंद करके और अपने सुखद लेखन वाले कोने में वापस चली...