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🌿🚩राम-जन्म🚩🌿(१).....
🚩राम-जन्म🚩

थी स्थिती विपरीत
आततायियों का प्रभुत्व
तीनो लोक पर।
अंधकारमयी साम्राज्य
फैला चारों ओर
गहरे घने पहरे थे आलोक पर ।

पाताल स्वर्ग और पृथ्वी लोक ।
हर लोक का करता दशानन भोग ।
स्वर्ग के देवता
जिसकी हुंकार से थे कांपते ।
करते हर आदेश का पालन,
शक्ति को भाँपत ।

थे असहाय इतने देवता ।
तो भला थी मानवों की क्या दशा ।
कंधे झुके थे करों के भार से
जो चक्रवर्ती कहलाते थे कभी ।
देव-दानव युद्ध के थे घाव
राजाओं पर गहरे अभी ।

न केवल भूप जनता भी,
करों के भार से थी दब रही ।
हर जगह ही गूंजता था 'त्राहिमाम'
अतीत में भला ऐसी दशा थी कब रही ।

सोचते युक्ति सभी ज्ञानी
की जगत का उद्धार हो ।
धरा भी सोंचती, भँवर में फंसी
मेरा कोई तो तारणहार हो ।
गुंजित दिशाओं में एक स्वर
भगवान का अवतार हो !
भगवान का अवतार हो !
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© Prashant Dixit 🌿