...

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मृत्यु और मैं
पड़ोस से रोने की आवाज़ें आ रही थीं।
मैंने बाहर जाकर देखा तो उनके दरवाज़े पर मृत्यु को खड़ा पाया।
हाँ! 'मृत्यु को'।
मृत्यु कुरूप थी। बेरंग, काले लिबास को पहने अट्टहास करती हुई।
मुझे खुद की ओर देखता पाया तो मेरी ओर आने लगी। मैं मुस्कुरा दी.. मेरी मुस्कुराहट उसे शायद भद्दी लगी, तभी उसने अपने कदम रोक लिए और मुझे अपनी ओर बुलाया।
मैं चल दी बिना किसी संकोच और भय के।
मेरे निकट पहुंचते ही उसने सवाल किया 'तुम्हें मुझसे भय नहीं लगता'!
मैंने बिन कुछ कहे 'ना' में गर्दन हिला दी।
उसने अभिमान से कहा 'मैं चाहूँ तो अभी इसी समय तुम्हें अपने आलिंगन में ले लूँ'।
ऐसा सुनकर मैंने मुस्कुराकर बाहें फैला दीं।
उसने विस्मय से पूछा.....