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सुलभ सुंदरी
ढलती शाम के साथ सबके दरवाजे बंद हो रहे थे। ठंड बढ़ रही थी, कि उसने अपने छज्जे पर जोर की अंगड़ाई ली। मुहल्ले भर की राख होती अंगीठियों में मानों किसी ने जवानी का...