...

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आज मुझे फिर उसकी याद आई है
आज मुझे फिर उसकी याद आई है ।
उस यादों को भुलाने,दरिया किनारे चल बसा।
सोचा दरिया के उस पार चले जाऊं,उसकी गांव घूम आऊं,
उसकी गलीओस गुजरते हुए,उसकी जुल्फों को संवारते हुए,
उसकी एक झलक देख आऊ,
मन में एक बेचनी सी हुई,मेरा सास यूंही थम सा गेया,
इधर उधर बहत ढूंडा,खुद को वांह अकेला पाया,
अपने आप को समझाया, अकेले कुछ वक्त बिताया,
एक वक्त के बाद एक नाव आया,नाव में अकेला नाविक को पाया,
नाविक को अपनी जज्बात बताई,मुझे उसपार लेजाने की इच्छा जताई,
कुछ देर मुझे बस युंही देखता राहा,और उदास हो कर यूंही बोलता रहा,
अभी तूफान आने की बात बताया,बात सुनकर मन में एक बैचेनी हुई,
आंखों से आसूं यूंही बेहेती गेयी,आंसू देख कर नाविक सेहेना पाया,
क्यों जाना है उस पर पूछ ना पाया,कुछ देर रुका,सोचने लगा,, और,
नाव में बैठने को इजाजत दिया,धीरे धीरे नाव को आगे बढ़ाया,
नाविक ने जैसा बोला था ठीक वैसा ही हुआ,
कुछ देर के बाद बड़ा तूफान आया,
देखते ही देखते हमारा नाव से टकराया,
नाविक ने मुझे देख कर बोला,
में तो दरिया किनारे पंहच जाऊंगा,
तुम दरिया के उस पर जाओगे केसे,
तुम इस तूफान का सामना करोगे केसे,
अपनी जान जोखिन्मे डाला ही क्यों,
आखरी तुम्हे उस पार जाना ही क्यों,
तब मेने बोला......
कुछ छूट गेया है,उससे लाने चला हूं
मेरे हिस्से की मोहब्बत वांहा पाने चला हूं,
किया था वादा उसने, इस चांद के सामने,
उस चांद को आज चुराने चला हूं,
जिस पेड़ का कली है वो,उस बाग का माली हूं में,
वो कली को आज तोड़ने चला हूं,
आज फिर उसकी याद आई है,
मेरी ख़्वाब को में लेने चला हूं,
मेरी ख्वाबों को में लेने चला हूं....




© _DILLIP KUMAR