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चोर

© Nand Gopal Agnihotri #हिंदी साहित्य दर्पण
# लघुकथा
स्वरचित नन्द गोपाल अग्निहोत्री
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पार्क में बच्चों की बहुत भीड़ थी, बाल मेला जो लगा था ।
जगह-जगह खाने-पीने के स्टाल, फेरीवाले अलग घूम घूम कर बेच रहे थे ।
एक चौदह -पन्द्रह साल का उच्च कुलीन बालक, कुछ न कुछ खरीदता चख कर फेंक देता ।
एक फटेहाल हमउम्र पीछे-पीछे चल रहा था, फेंकी हुई खाद्यसामग्री उठाता कुछ खाता और थैले में डाल लेता था ।
अचानक उसकी नजर पड़ जाती है, दो-चार हाथ उसे जड़ कर थैले से सारा सामान बिखरा देता है, तेरे बाप का माल है , चोर कहीं का ।
कुछ लोग वहाँ जमा हो जाते हैं, उसके पिता भी ।
इसने चोरी की है बेधड़क कहा उसने ।
हाँ, ये लोग ऐसे ही होते हैं, देखो थैले में कितना भर कर रखा था, भीड से आवाज आती है ।
उसे अपनी बात कहने का मौका कहाँ था ।