...

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बस इतना सा साथ 69
नेहा इंस्टिट्यूट से निकल रही होती है। निकलते हुए मनीष को फोन मिलाती है। मनीष नींद में फोन उठाता है।
मनीष- हम्म।
नेहा- सो रहे हो। चलो कल बात करते हैं। गुड
नाइट ।
मनीष - कल क्यूँ , दोपहर को बात करते हैं।
नेहा- ( हँसते हुए ) मेरी दोपहर की तो शाम होने
वाली है। आप कहीं रातों- रात अमेरिका
तो नहीं शिफ्ट हो गए।
मनीष - शाम ! ( फिर आँख खोल मोबाइल में
टाइम देखता है। अरे ढाई बज गए । आपने
उठाया क्यूँ नहीं ।
नेहा - ये जिम्मेदारी तो अभी आपको खुद ही
निभानी पड़ेगी । अभी वो दिन बड़ा दूर है
कि मैं आपको उठाऊं ।
मनीष - हाए, कब आएगा वो दिन ।
नेहा- वैसे आज से तो मॉर्निंग थी ना ?
मनीष - हाँ, पर आज वो कालरा के साथ जाना
था।
नेहा- कालरा?
मनीष - हाँ, वो गौरव। पड़ोस में ही रहता है।
एक ही स्कूल से पढ़ाई करी और फिर एक
ही कॉलेज से होटल मैनेजमेंट भी किया ।
नेहा- मतलब आप दोनों चड्डी बडी वाले दोस्त हैं।
मनीष - अरे नहीं, हम तो कॉलेज में जा के दोस्त
बने । पहले तो बस हाए- हेल्लो होता था। ये
तक नहीं पता था कि दोनों एक ही
यूनिवर्सिटी का फॉर्म भरा है।
नेहा- सही है। चलो फिर आप जाओ अपने
दोस्त के साथ मैं रखती हूँ।
मनीष - इतनी जल्दी ?
नेहा - जल्दी ? दस मिनट से तो मैं पार्किंग में खड़े
हो कर बात कर रही हूँ । कोई देख रहा भी
होगा तो दस बातें सोच रहा होगा ।
मनीष - सोचने का क्या है , सोचने दो ।
नेहा- एक दम सही। वैसे ही बातों का क्या , बातें
तो होती ही रहेगी।
मनीष - अरे यार, तुम भी । अच्छा बस पांच
मिनट ।
नेहा- bye
मनीष - दो मिनट।
नेहा- मैं यूँही काट दूँगी फिर फोन, फिर मत
कहना bye भी नहीं किया था मैंने ।
मनीष - बड़े जिद्दी हो आप ।
नेहा - बहुत बड़ी।
मनीष - चलो फिर bye ।
नेहा - bye ।
( फोन रख सीढ़ियां चढ़ने ही लगती है कि मनीष का मैसेज आ जाता है। )
मनीष- going with gaurav
नेहा- तो गाड़ी मुझे भेजनी है क्या?
मनीष - नहीं बाइक है उसकी ।
नेहा- ok
मनीष - 👹
नेहा - ये फोटो तो नहीं भेजी थी आपने मेरे घर
पर ।
( मनीष नेहा का मैसेज देख मुस्कुराता है और खुद से कहता है। )
मनीष - अजीब लड़की है, गुस्सा भी ढंग से नहीं
होने देती।
( सोच ही रहा होता है , कि तभी गौरव की आवाज आती है । )
गौरव - चल भाई , कितनी देर लगाएगा।
मनीष की मम्मी - देख ले तुझे फोन कर के बुला
लिया, खुद का इसका कोई अता- पता ही
नहीं है ।
मनीष - आ रहा हूँ, बस दो मिनट।
( मनीष जल्दी - जल्दी तैयार होता है, और नीचे जाता है । मनीष की मम्मी और गौरव बात कर रहे होते हैं। मनीष अंदर जाते ही गौरव से कहता है। )
मनीष - क्या बात है भाई फोन के इंतजार में ही
बैठा था क्या ?
गौरव- बिल्कुल सही ।
मनीष की मम्मी - तू कब से फ्री होने लग गया ।
गौरव - फ्री कौन है आंटी , दुकान पर नया समान
आया हुआ है, दो जगह आज ही डिलिवरी
भी करनी है । वो तो ( मनीष के कंधे पर हाथ रखते हुए। ) इसने बोला तो वक़्त निकालना
ही पड़ा, वरना अपनी ही सगाई में जोकर
बना फिरता ये । ( गौरव और मनीष की मम्मी हँसते हैं। )
मनीष- अच्छा जी , मतलब मेरी पसंद इतनी
बेकार है। ( अपनी मम्मी से ) और आप
क्या हँस रहे हो , देखा जाए तो बात
आपकी पसंद की हो रही है । मेरी सारी
शॉपिंग आप ही करते हो ।
गौरव - ऐसा है आंटी जी ।
मनीष - हाँ जी ऐसा ही है।
गौरव - हाँ तो , आंटी जी की पसंद तो एक दम
awesome है , मैं तो तेरी बात कर रहा हूँ।
आंटी की तो बात ही ....
मनीष की मम्मी- बस कर बेटा, इतनी भी
तारीफ मत कर कि तेरी शादी में मैं तुझे
ही जोकर बना दूँ। अभी तुम दोनों जाओ,
और कोई बढ़िया - सा सूट लेकर आना
आज के टाइप का । और गौरव तू अपने
से देख लेना , इससे कुछ पूछेगा तो ये बस
एक नीला रंग ले कर बैठ जाएगा। इसकी
अलमारी खोल के देखना किसी दिन
ऐसा लगेगा नील के खेती कर रखी हो ,
टी-शर्ट ब्लू, शर्ट ब्लू अरे यहाँ तक
कि .........
गौरव - बस - बस आंटी जी मैं समझ गया ब्लू नहीं लाना है। ( मनीष से ) अब चल भी ले भाई सुबह से तेरा इन्तज़ार कर रहा हूँ , दुकान भी जाना है मुझे ।
मनीष - फोन कर देता भाई आँख लग गई थी ।
( मम्मी से ) आते हैं मम्मी । ( कह मनीष और गौरव बाहर निकल जाते हैं। )
गौरव - ( धीरे से मनीष से ) आँख लग गई थी या
आँख लड़ गई थी।
मनीष - चुप कर पागल मम्मी से पूछ ले सो गया
था मैं होटल से आते ही।
गौरव - और उससे पहले ?
मनीष - उससे पहले होटल और क्या ?
गौरव - चल मुझ से तो ना छिपा , लंबी बातों में
रातें कैसे काली होती हैं मुझे भी पता है ।
मनीष - रात तो वैसे भी काली ही होती हैं।
गौरव - ओए, तू दो गाड़ी में सवार तो नहीं होने
की सोच रहा ।
(गौरव की बात सुन मनीष रुक जाता है, चेहरे का रंग उड़ जाता है। )
ओए मज़ाक कर रहा हूँ । सबको पता है तू वन
वुमन मेन है । ( बाइक स्टार्ट करते हुए । ) वैसे
भाभी से बात तो होती होगी ।
मनीष- ( बाइक पर बैठते हुए, थोड़ा अपने ख़्यालों में खोया हुआ ।) हम्म , होती है। उसी के
फोन से तो नींद खुली थी ।
गौरव - क्या बात है , तुम तो .....
( गौरव बोलता रहता है, पर मनीष अपने में सोच रहा होता है। गौरव की दो गाड़ी वाली बात उसके दिमाग से नहीं निकल रही होती है । अपना फोन निकालता है जेब से और संदीप cruise नाम से एक नंबर पर मैसेज करता है । )
मनीष - ( संदीप को मैसेज करता है । )
भाई जरूरी है , जब फ्री हो तो बात
करना ।
जल्दी ।
( मनीष अपने मन में सोचता है , क्या सही है क्या गलत है ये तो पता नहीं। पर नेहा को,खो नहीं सकता मैं । किसी भी हालत में नहीं। )
( उधर नेहा के घर पर , नेहा किचन में समोसे बना रही होती है। नेहा को हॉल में से बोल रही होती हैं । )
नेहा की मम्मी - बस ये तुझे चढ़ा देते हैं, और तू
लग जाती है। अभी मैं कुछ काम
बताऊँगी तो तुझे बच्चों के टेस्ट याद आ
जाएंगे।
नेहा - एक संडे को ही तो बनाती हूँ, आपको तो
खुश होना चाहिए कि लड़की कुछ नया
बना रही है । अपने ससुराल में आपका
नाम रोशन करुँगी, वरना आज कल तो
पैसे दे कर सीखती हैं लड़कियां ये सब ।
गौरव - सही बोल रही है, एक दम सौ प्रतिशत।
नेहा की मम्मी - हाँ , तेरी ही कमी थी एक दम सौ
प्रतिशत । मेरे किचन को खराब कर के
छोड़ा ना , ....
( नेहा बीच में ही बोल पड़ती है। )
नेहा - तो समोसे के साथ चटनी नहीं बेलन
मिलेगा।
( गौरव और नेहा दोनों हँसते हैं, नेहा की मम्मी को भी हँसी आ रही होती है। पर अपनी हँसी को रोकते हुए गुस्से में देखती हैं दोनों को । तभी दरवाज़ा बजता है और शीला आंटी की आवाज आती है। )
शिला आंटी - कौन खा रहा है समोसे।
नेहा - शिला आंटी है , ( गौरव से ) खोल दरवाजा
मेरे हाथ खराब हैं।
( गौरव दरवाजा खोलता है । )
गौरव - नमस्ते आंटी जी ।
शिला आंटी - नमस्ते बेटा , नमस्ते ।
नेहा की मम्मी - आजा तू भी कहा ले समोसे।
शिला आंटी - ना बहन मेरा तो पूरे नौ दिन का व्रत
है । तेरा भी होगा ।
नेहा की मम्मी- मेरा भी है, और ये ( नेहा की मम्मी ) किचन में खड़ी masterchef इसका भी
है ।
शिला आंटी- ( ये तो तूने ग़ज़ब कर रखा है । )
चार दिन बाद सगाई है और तूने इसको
अभी भी किचन में खड़ा कर रखा है।
गौरव - नहीं आंटी , सात दिन ।
शिला आंटी - ( गौरव को धीरे से थप्पड लगाते
हुए। ) तू बड़ा दिन गिन के रख रहा है।
नेहा की मम्मी - ( नेहा से ) ले और सुन । मैं तो
तब से यही कह रही हूँ।
नेहा - क्या आंटी जी आप भी । एक संडे तो
मिलता है, बाकी दिन तो यूँ ही रोज का
बनता है । एक दिन संडे कुछ स्पेशल
बनाओ तो मम्मी ऐसे करती हैं। अच्छा
आप बताओ कल्पना कुछ बनाती है तो
आप भी ऐसे करते हो ।
शीला आंटी - बनाए , तब तो बताऊँ करती हूँ या
नहीं। अभी तो मैं ही जो बनाऊँ वो स्पेशल
बन जाता है।
( सब हँसते हैं। फिर शीला आंटी कहती हैं। )
हँसी मज़ाक एक तरफ , पर अभी थोड़े
दिन तू ये पानी में कम काम किया कर ।
नेहा - काम ही क्या करती हूँ, आंटी जी । आप
भी मम्मी की तरह शुरू हो गए ।
शीला आंटी - शुरू ना हुई । मौसम वैसे ठंडा है ,
फिर हाथ पांव फट जाएंगे, तो ससुराल
वाले क्या कहेंगे।
नेहा - यही कहेंगे कि लड़की सब काम कर लेती
है । आप लोगों की तारीफ करेंगे।
नेहा की मम्मी - ( ज़रा सा मुस्कुराती हैं, फिर शीला आंटी से कहती हैं। ) बोल अब क्या
बोलेगी । ऐसे तो ज़वाब देती है ये। इसकी
छोड़ तू बता कैसे आना हुआ ।
शीला आंटी - अरे हाँ , मैं तो भूल ही गई थी । ( कहते हुआ थैला खोलती हैं , और उसमें से लहंगे का बैग निकालती हैं। ) ये देख नेहा के
ससुराल से आया है । नेहा के सगाई का
लहंगा । ( नेहा से ) देख कैसा है।
नेहा - इतनी जल्दी बन गया , कल तो नाप भेजा
था ।
नेहा की मम्मी - नहीं कपड़ा है , अपने डिजाइन
से बनवाने को बोल रही थी।
नेहा - ऐसे फिर इतने दिनों से रट लगा रखी थी
नाप की ।
शीला आंटी - ऐसे नहीं बोलते । वैसे सही ही है
आपने हिसाब से बनवा लो। मैंने तो पहले
भी बोला था , पर तब एक ही बात बोल रही
थी । हमारे यहाँ बहू का सब ससुराल से ही
करा जाता है।
नेहा की मम्मी - रंग तो अच्छा है , मैं तो सही
बताऊँ इसी बात से परेशान थी ना जाने
कैसा लहंगा लिया होगा ।
शीला आंटी - मैंने भी रतन से यही कहा था । वो
जैसे बता रही थी , मैंने तो कल्पना से कह
दिया था तेरी शादी में पहले ही बोल देंगे
लहंगा वगैरह हम ले लेंगे आपका मन ना
माने तो पैसे आप दे देना ।
( नेहा किचन में काम करती - करती हँसने लगती है। आंटी नेहा को हँसते हुए देखती हैं और कहती हैं। )
तेरा घर है वो , तेरी साँस को पता चला ना यूँ
हँस रही उनकी बातों पर तो जीना हराम कर
देगी तेरा ।
नेहा - क्या आंटी, मेरा घर भी कह रहे हो और
डरा भी रहे हो ।
शीला आंटी- अरे मज़ाक कर रही हूँ। बोल के तो
दिखाए तुझे कुछ हम कब काम आएंगे।
( नेहा आंटी की बात पर स्माइल करती है, और सोचने लगती है- मेरा घर, क्या सच में मेरा घर।)

वो नन्हें कदमों की आहट
किलकारी की चाहत
जब दुनिया में आई थी
हर किसी ने गले लगा
दी बार - बार बधाई थी ।

मुबारक हो, घर लक्ष्मी आई है
कह ली ढेरों बलाए थी
गुड़िया रानी , राज दुलारी
बनी से नामों की वो महारानी थी ।

माँ की लाडो ,
दिल की शहजादी
माँ के आंचल से यूँ थी बँधी
जैसे शरीर से जुड़ी होती है परछाई
ममता से सिंची ,
संवेदनाओं से जुड़ी
थी जिसकी दुनिया सारी ।

पिता के आँगन की खनक
उनके माथे की चमक
कलियों सी महकती
हवाओं में झूमती
थी जिसकी बाबुल से यारी
अब होने लगी है उसी की
विदाई की तैयारी ।

उम्र के इस पड़ाव पर
एक नए बंधन ,
नए परिवार के सांचे मे है अब
उसको ढलना , क्यूँ कहते हैं
आँगन की लक्ष्मी को भी पराया धन
है अब उसको समझाना ।

पर क्या लक्ष्मी को अब
अपना आँगन मिल पाएगा
वो नया घर क्या उसको
अपना घर सा भाएगा
या पराए घर से आई है
कह वो बंधन उसे सताएगा
किस आँगन को मैं अपना कहूँ
सवाल लक्ष्मी को सताएगा ?
© nehaa