कविताओं की डायरी
वो आज 18 बरस की हो चली थी। जन्मदिन था उसका । लेकिन आज उसे लग रहा था मानो ये दिन इस साल से गायब हो जाए कहीं ।उस ने अपनी कविताओं की डायरी जलाई थी आज । उसकी कविताओं में सिर्फ उस के अल्फाज़ और एहसास ही नहीं कई राज़ भी छुपे थे।
जब वो 8 साल की थी तभी से लिखा करती थी छुप छुप कर अपनी मां से , टीचर से , सहेलियों से ! इतना छुपा चुकी थी अपने कविताओं को कि मानो यूं लगता जैसे किसी मां ने अपने बच्चे को छुपाया हो नज़र लगने के डर से । उसकी हर कविता में होता था वो दर्द जो उसने पूरे दो दिन तक छुपाया था मां से , पापा से ।
दो दिन के उस जिस्मानी और दिलोदिमाग के दर्द ने उसके पूरे बचपन...
जब वो 8 साल की थी तभी से लिखा करती थी छुप छुप कर अपनी मां से , टीचर से , सहेलियों से ! इतना छुपा चुकी थी अपने कविताओं को कि मानो यूं लगता जैसे किसी मां ने अपने बच्चे को छुपाया हो नज़र लगने के डर से । उसकी हर कविता में होता था वो दर्द जो उसने पूरे दो दिन तक छुपाया था मां से , पापा से ।
दो दिन के उस जिस्मानी और दिलोदिमाग के दर्द ने उसके पूरे बचपन...