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कहानी
*कहानी: सन्तों में गुस्सा नहीं होता...*

*एक नदी तट पर स्थित बड़ी सी शिला पर एक महात्मा बैठे हुए थे। वहाँ एक धोबी आता है किनारे पर वही मात्र शिला थी जहां वह रोज कपड़े धोता था। उसने शिला पर महात्मा जी को बैठे देखा तो सोचा- अभी उठ जाएंगे, थोड़ा इन्तजार कर लेता हूँ अपना काम बाद में कर लूंगा। एक घंटा हुआ, दो घंटे हुए फिर भी महात्मा उठे नहीं !*

*अतः धोबी नें हाथ जोड़कर विनय पूर्वक निवेदन किया कि महात्मन् यह मेरे कपड़े धोने का स्थान है आप कहीं अन्यत्र विराजें तो मै अपना कार्य निपटा लूं। महात्मा जी वहाँ से उठकर थोड़ी दूर जाकर बैठ गए। धोबी नें कपड़े धोने शुरू किए, पछाड़ पछाड़ कर कपड़े धोने की क्रिया में कुछ छींटे उछल कर महात्मा जी पर गिरने लगे। महात्मा जी को क्रोध आया, वे धोबी को गालियाँ देने लगे। उससे भी शान्ति न मिली तो पास रखा धोबी का डंडा उठाकर उसे ही मारने लगे। सांप उपर से कोमल मुलायम दिखता है किन्तु पूंछ दबने पर ही असलियत की पहचान होती है।*

*महात्मा को क्रोधित देख धोबी ने सोचा अवश्य ही मुझ से कोई अपराध हुआ है। अतः वह हाथ जोड़ कर महात्मा से माफी मांगने लगा। महात्मा ने कहा – दुष्ट तुझ में शिष्टाचार तो है ही नहीं, देखता नहीं तूं गंदे छींटे मुझ पर उड़ा रहा है? धोबी ने कहा – महाराज शान्त हो जाएं, मुझ गंवार से चूक हो गई, लोगों के गंदे कपड़े धोते धोते मेरा ध्यान ही न रहा, क्षमा कर दें। धोबी का काम पूर्ण हो चुका था, साफ कपडे समेटे और महात्मा जी से पुनः क्षमा मांगते हुए लौट गया महात्मा नें देखा धोबी वाली उस शिला से निकला गंदला पानी मिट्टी के सम्पर्क से स्वच्छ और निर्मल होकर पुनः सरिता के शुभ्र प्रवाह में लुप्त हो रहा था, लेकिन महात्मा के अपने शुभ्र वस्त्रों में तीव्र उमस और सीलन भरी बदबू बस गई थी। कौन धोबी कौन महात्मा? यथार्थ में धोबी ही असली महात्मा था, संयत रह कर समता भाव से वह लोगों के दाग़ दूर करता था।*

*“क्रोध और असहिष्णुता सही समझ के दुश्मन हैं.”*

*“क्रोध एक तरह का पागलपन है.”*

*“क्रोध मूर्खों के ह्रदय में ही बसता है.”*

*“क्रोध वह तेज़ाब है जो किसी भी चीज जिसपर वह डाला जाये ,से ज्यादा उस पात्र को अधिक हानि पहुंचा सकता है जिसमे वह रखा है.”*

*“क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकडे रहने के सामान है; इसमें आप ही जलते हैं.”*

*“मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है, किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है।”*

*“जब क्रोध आए तो उसके परिणाम पर विचार करो।”*

*“जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं करता और क्षमा करता है वह अपनी और क्रोध करनेवाले की महासंकट से रक्षा करता है।”