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नई दिशा
*नई दिशा* सागर अपने विद्यालय का एक होनहार विद्यार्थी था। उसे कहानी, कविता लिखने का शौक था। उसके पिताजी नगर पालिका में अध्यक्ष के पद पर आसीन थे।
उसके पिताजी श्री
दीनदयाल जी सम्पन्न थे परन्तु उन्हें नशे की बुरी लत थी।
वे अक्सर सागर को छोटी-छोटी बातों पर डांट फटकार देते थे। सागर अपने पिताजी से बहुत डरा- सहमा रहता था।
एकबार नगर पालिका की ओर से "नशा मुक्ति" पर प्रतियोगिता आयोजित किया गया था। सागर भी इस कार्यक्रम में शामिल होना चाहता था। परन्तु उसके मित्र उसकी हंसी उड़ाने लगे।उनका कहना था जिसके पिताजी इतना नशा करता है वह नशा मुक्ति प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता है।पर सागर टस से मस नहीं हुआ।
सागर स्लोगन लेखन में भाग लेकर शाला का प्रतिनिधित्व किया। प्रतियोगिता समाप्त होने के बाद पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया गया था।
सागर का चयन प्रथम स्थान पर हुआ। सभी उसका प्रशंसा करने लगे।
बच्चों को पुरस्कृत करने के लिए विशिष्ट अतिथि के रूप में सागर के पिताजी को आमंत्रित किया गया था। जब प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले का नाम में सागर को बुलाया गया तो उसके पिताजी अपने बेटे को पुरस्कृत कर बहुत खुश हुए पर मन ही मन उन्हें ग्लानि हुई। वे अपराध बोध कर रहे थे।उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। वे भरी सभा में सागर से वादा किए कि वे अब कभी नशा नहीं करेंगे एवं नगर में भी नशा मुक्ति अभियान चलायेंगे।
सभी ने ताली बजा कर उन्हें सहमति दी और सागर को बधाई दी।

रीता चटर्जी।