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अंबक का प्रेम [भाग-1]
अंबक का अर्थ है आँख और क्या आपने आँखों से किसी से प्रेम किया है? मै अपने अनुभव से कह सकता हूँ प्रेम बस होठो या 'आई लव यू ' कहकर नहीं अपितु इन दो छोटे-छोटे अंबक से भी होता है। अगर कोई आँखों से प्रेम करने लगे तो उसका अंदाज और आनंद ही अलग है और अविस्मरणीय है। आईये आपका इस प्रेम अध्याय में स्वागत है। 

राघव इंटर फर्स्ट डिवीज़न से पास कर दिल्ली के सबसे फेमस कॉलेज में नामांकन कराता है। वह देखने में बहुत हैंडसम था , उसके बाल छोटे थे जो उसके लुक को कॉंफिडेंट बनाते थे और उसका बॉडी फिट और फाइन था। राघव का आज पहला दिन था कॉलेज में। कॉलेज में उसके साठ कॉल्लेग थे जिनसे उसका बनता नहीं था।  वह बात बहुत कम किया करता जिसके कारन लोग ध्यान नहीं देते लड़िकयाँ उसपे मरती थी लेकिन उसका बात न करना उनके मन को बोरिंग कर दिया था जिसके कारन वे भी राघव पर  देना छोर दी।आधा साल ऐसे ही बीत गया और फोर्मटिवे एग्जाम भी हो गया था जिसमे राघव कॉलेज में टॉप आता है। तब से कॉलेज में वो फेमस हो गया। कई लड़के उसके दोस्त बन गए और कई लड़कियाँ उसे लाइन मरती ताकि अपना कॉलेज असाइनमेंट करा सके लेकिन राघव उन लोगो के तरफ देखता भी न थे। 

आज भी सूरज प्रतिदिन के भाती पूर्व से ही उगा लेकिन आज वो राघव को एक अलग-सी एनर्जी दे रहा था जो उसके मन को आमोदित कर रहा था। "वाह! क्या मौसम है?" सूरज की रौशनी जिस प्रकार सूर्यमुखी को खिल-खिला देती वैसे ही राघव के मन को पुलकित क्र रही थी। राघव अपने घर को काम कर कॉलेज चला जाता है और अपने बैच के तीसरे बेंच पैर जेक बैठ जाता है। अभी, उसके बैठे पांच मिनट ही हुआ था की एक कोमल सा हाथ उसके कंधे को थप-थपाता है।  वह पीछे मुर के देखता है की कोण है की वह एक तक देखते रह जाता है। उसके सामने शांभवी थी वो दिखने में हुसन परी सी थी, उसके गाल और होठ गुलाब के तरह लाल थे और उसकी भूरी सी आँखे चील-सी थी मानो जिन्हे भी देखे उसे अपने पंजो में जकड़ ले  जिस प्रकार राघव उसके आँखों से जकडा चूका था।  

"यू आर राघव न !"

 
"हममम ... " मैंने कहा। 
"तुमसे एक रिक्वेस्ट करने आई हूँ क्या तुम अपना असाइनमेंट कॉपी दे सकते हो? प्लीज!" राघव उसके कोयल सी आवाज सुन सुध-बुध खो चूका था और उसके चील सी आँखों में बहुत कस मानो जकड़ा चूका था। उसने उसकी बात मन ली ताकि उनसे बच सके और उन से बस एक बात कहा की वो कॉपी पांच दिनों के अंदर लोटा दे। "है बाबा! ठीक है में तुम्हे पक्का लोटा दूंगी। " कहकर वो चल दी।  राघव उसके जाते ही एक गहरी साँस लेकर बाहार करता है ".......... " । राघव पहली बार अपने सेमेस्टर की किसी लड़की से बात किया था। उसे वैसे तो बाहर कुछ अनुभव नहीं हो रहा था लेकिन उसके हृदय में एक अलग भाव जनम लेने लगा , एक प्रकश-सी चमक उसके हृदय के किसी एक कोने को मानो जहाँ घनघोर अंधकार था उसे प्रकाशित कर रही थी। {क्या ये प्रेम था!}

राघव वैसे बाहर किसी लड़की से  बात न करता था और करे भी क्यों आखिर सोसाइटी गलत नजिरए से जो देखती और उसके फ्रेंड्स उसको मॉक करते इसलिए वो शांभवी से बात करने से घबड़ाता था।  वो स्पेशली, कॉलेज में बात करना नहीं चाहता था लेकिन अब उसे  शायद शांभवी  से बात करने का मन करता जो वह खुद नहीं  जानता था। अगले दिन, वो अपने घर का सारा काम कर , लंच पैक कर कॉलेज जल्दी चल देता है लेकिन पता नहीं क्यों उसकी आँखे यहाँ-वहाँ देखे जा रही थी मानो किसी मधु के प्यास में हो।कॉलेज जाकर वो अपने बैच के तीसरे बेंच में जाकर बैठ गया और अपने आँखों को शांत करने की कोशिश करने लगा। कभी उनपर ध्यान नहीं देना चाहता तो कभी दबाओ के साथ उन्हें काबू में करने की कोशिश करता। लेकिन आँखे तो चंचल होते है न ! बार-बार कभी कॉलेज के गेट को देखती , कभी जानवी को जो मेरे  पीछे थी या लगभग सभी लड़कियों को देखती ,  तो कभी उस कंधे को देखती जिसपे शांभवी ने हाथ रखा था। तभी, शांभवी की मधुर आवाज सुनाई देती है मेरा चेहरा अचानक उस और मुड़ गया।  "आह ! अब इन आँखों को शांति मिली।" राघव फिर से शांभवी को निहारे  जा  रहा था मानो उसकी आँखे शांभवी की चील-सी आँखों में फिर खुद को कस के जकड़ा लेना चाहती थी।राघव के मन में तरह-तरह के ग़ज़ल, शायरी और प्रेम गीत बजने लगे जिसे वो बस कभी-कभार शाम को छत पे टहलते वक़्त सुनता था। उसके मन ने एक शायरी कहि -"प्रेम में बाड़ी है नहीं ,
   प्रेम पिया से होय ,
    प्रेम स्वयं चकोर-सा,
    प्रेम शशि से होय।"
    ~ तेजस्वी सिंह 
शांभवी भी राघव को देखती है और पता नही दोनों की आँखे क्या बात करती है कि थोड़े देर बाद शांभवी अपना बैग लेकर राघव के बगल वाले बेंच पर आकर बैठ जाती है। क्लास शुरू हो गया। राघव का दिमाग पढ़ने में एकाग्र था लेकिन उसका  मन छट-पटा  रहा था ठीक उसी प्रकार जब किसी की सासे थोड़े देर के लिए रुक जाती है। " क्या दिल के छट-पट पर ध्यान न देना इतना जरूरी है राघव ! " उसके मन ने कहा। राघव शांभवी की बस एक झलक देखने को मुड़ा तो बस उसे देखे ही जा रहा- रहा था - "आह ! रेशम-सी मानो बाल है , आँखे तो वाकई चील-सी थी और उसके चन्दन से सुगन्धित हाथ जो थोड़े लंबे और पतले थे। " शांभवी की दोस्त जहान्वी मुझे घूरे जा रही थी और थोड़े देर बाद उसने शांभवी को थपकी मारी और मेरे तरफ इशारा किया। शांभवी कॉन्फिडेंटली मेरे तरफ देखती है और अपने चिन को अपने हाथ पर रख मुझे देखती है और एक प्यारा स्माइल देती है। "हाय ! उसकी डिंपल मार-सी डाली।" राघव झट-से मुख आगे कर किताबो को देखने लगता है और उसके माथे से अचानक पसीना आने लगा , दिल जोर-जोर से धड़कने लगा और उसके हाथ में जो कलम था वो फ्लोर पे गिर गया। {शायद , शांभवी जरूर उसे देख जोर से हस पड़ती। } ................{आगे के अध्याय में }
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