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सोच
दोस्तों, हम जीवन को मनमोहक, मनोरंजित करने के लिए , उद्देशित करते हैं। मतलब जीवन में
उत्साहित रहने के लिए, हम अपने जीवन को किसी उद्देश्य से बांध लेते हैं, और फिर उसे पूरा करने में अपना जीवन समय खर्च करते हैं।
इससे हमारे जीवन को एक लक्ष्य प्राप्त होता हैं.. और यही वो खास बात है, जो हमें इस दुनिया में और जीवों से अलग बनाती है।
हम भुल जाते हैं कि हम भी एक जीव है दूसरे जीवों की तरह, हम भी इसी प्रकृति का एक हिस्सा है दूसरे जीवों की तरह ... यही हम गलती कर बैठते हैं, और सोच जैसे दुर्लभ शक्ति का इस्तेमाल करने के बावजूद भी इंसान और जीवों की तरह आपस में ही लड़कर खुद के साथ साथ प्रकृति को भी नष्ट कर रहा है।
इंसान भलि भांति इस बात को समझता है कि, वो प्रकृति के खिलाफ चल रहा है, फिर भी वो खुद को रोक नहीं पा रहा है__ क्योंकि, इसका एक मात्र कारण है "आदि होना".
किसी भी चीज को बार बार करने से कोई भी व्यक्ति, जीव उस चीज का आदि हो जाता है, फिर चाहे वो सोच हो या कोई भी कार्य। इससे इंसान अपनी आजादी को खो देता ।
और, जीवन क्या सिखाता है हमें-- "आज़ाद रहना"
फिर जीवन का स्वभाव क्या है?__ कि, जो हमारी जरूरत है उसे पूरा करने का प्रयास करना।
और यह संभव होता हैं
"परिश्रम" से,
लेकिन, सोचने की अद्भुत क्षमता के बल पर इंसानों ने, परिश्रम के संयमी सफर को , निजी स्वार्थ से और भी ज्यादा खडतर बनाया।
अगर अपने पास आजादी नहीं है तो दूसरों की आजादी छीन लो... ऐसी विकृत सोच को जन्म दिया और जीवन को भी ऐसा ही बनाया।
आजादी की सोच और गुलामी की सोच जन्म से ही एक दूसरे के विरूद्ध संघर्ष करती आ रही है।
लेकिन इन सबमें अब प्रकृति को भी लाया जा रहा है।
और प्रकृति का स्वभाव है... स्थिर रहना । लेकिन इस स्थिरता को इंसानी सोच हमेशा बिगाड़ती रहती है... और यही कारण है कि, अब प्रकृति भी इस युद्ध में अपनी तरफ़ से कोशिश कर रही है। वो इंसान को विनाश से बचाने की कोशिश कर रही है। वो हर बार इशारा दे रही है कि, इंसानों इंसान बनो। प्राकृतिक रहो। खुद को जानों ,‌सत्य का स्वीकार करो। परिवर्तन करो.. सहयोग की भावना को बढ़ावा दो।
कर्म करने की कोशिश करते रहो।
तुम कौन हो ? तुम क्या हो?
इसकी अपेक्षा अधिक तुम क्यों हो यह जानने की कोशिश करो।
जन्म ही कारण है..।
पर क्यों और कैसे?
ज्ञान से इस पहेली को सुलझाने की कोशिश करो।
यहां पर कोई भी मिटता नहीं बल्कि की परिवर्तित होता है।

सोच...शक्ति का भाग है ।
सोच...किसी भी कारण की शुरुआत और अंत है।
सोच... ज्ञान की जननी है,
अज्ञानता कि कारण भी है।
सोच... जीवन का हिस्सा है और जीवन का सार भी है।
"सोच" ही कार्य की पहचान है और कार्य जीवन की पहचान है।
आधार है, उद्धार हैं, अधिकार है, सबकुछ है.. और कुछ भी नहीं है !!!
मतलब कल्पना है...
सोच सिर्फ सोच ही है।
जन्म और मृत्यु के बीच का समय,यानि कि जीवन का एकमात्र हथियार है सोच !!!
जीवन वर्तमान में हैं, वर्तमान एक मौका है जीने का,
वर्तमान में आपका वर्तन ही आपकी सोच को प्रकट करता है। जो बाकी रहेगा वो आपका वर्णन होगा‌ , वो भी वर्तन से ... !
*"सोच"*