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यह रोग है क्या
मैं उदास नहीं हूँ.. शायद परेशान भी नहीं हूँ.. बस कहीं भी मन नहीं लगता। खुद से बहुत ऊब गई हूँ।
रात होते ही अजीब सी वीरानी छा जाती है मुझ पर। रात में आए कुछ पुराने ख़्याल नींद को ही नहीं तोड़ते बल्कि धड़कनों को बढ़ा भी देते हैं। हाँथ काँपने लगते हैं और आँसू गालों पर लुढ़कने लगते हैं।
रोज़ सुबह बिस्तर से केवल यह सोचकर खुद को धकेल कर उठाती हूँ कि थोड़ी देर बाद फिर से वापस बिस्तर पर आऊंगी।
तुमने शायद गौर किया होगा कि तुमसे बात करते-करते अचानक खोने लगती हूँ और उदास हो जाती हूँ।
यह उदासी मुझमें नहीं है, मैं खुद एक उदासी हूँ।
सुनो, यह कोई रोग है क्या..?
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मेरा कुछ भी करने का मन नहीं होता..
खाना खाने का मन नहीं होता, नहाने का मन नहीं होता.. कहीं जाने का मन नहीं होता, किसी से मिलने का मन नहीं होता, बात करने का मन नहीं होता और यहाँ तक कि सोने का भी मन नहीं होता।
पर जानते हो सबसे अजीब क्या है..
मैं कहीं जाने के बाद वापस घर नहीं आना चाहती, किसी से मिलने के बाद उसे जाने नहीं देना चाहती.. चाहती हूँ बातें कभी ख़त्म ना हों.. सोती हूँ तो बस जागना नहीं चाहती।
लगता है ऐसे सफ़र पर निकल पडूँ जिसकी कोई मंज़िल ना हो सफ़र ख़त्म ना हो.. और मैं बस किसी का हाथ थामे जहाँ वो ले जाना चाहे जाती रहूँ।
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जानते हो मेरे जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी क्या है..?
कोई प्यार से बात ही कर ले तो आँखें भीग जाती हैं.. किसी ने हाल पूछ लिया तो मेरे अंदर से दो आवाज़ें आती हैं..
दिल कहता है "मैं ठीक नहीं हूँ"!
दिमाग़ कहता है "मैं ठीक हूँ.."!
बिडम्बना यह है कि दिल की बात मुझे सुनाई देती है और दिमाग़ की बात सबको।
जानते हो अगर कोई मुझसे कह दे 'खुश रहो' या "ईश्वर तुम्हारी परेशानियों को दूर करे" तो आँखें आँसू बहाने लगती हैं और मैं लगभग रोने ही लगती हूँ।
मगर मुस्कुराने के मामले में तो मेरा कोई जवाब ही नहीं है.. मैं मुस्कुराने में इतनी पक्की हो चुकी हूँ कि आज वर्तमान में सबसे आसान काम है मेरे लिए 'मुस्कुराना'।
हाँ, केवल मेरी मुस्कुराहट मेरे खुद के हृदय तक नहीं जाती..
यह मुस्कुराहट मृत है इसका मेरे जीवन में कोई अस्तित्व ही नहीं रहा।
-रूपकीबातें
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© रूपकीबातें