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जीवनदायिनी मां
शीर्षक---- जीवनदायिनी मां


जीवन विषयक अवधारणा प्रकृति में जब भी चिंतन किया जाता है तो, सदैव प्रकृति रूप जननी को ही जीवनदायिनी या समस्त महा भूतों की माता कहते हैं।
यह श्रेय सदा से ही प्रकृति को प्राप्त रहा है, यदि हम उपनिषदों और शास्त्रों की बात करें तो प्रकृति और पुरुष का ही संयोग जीवन के उत्पत्ति का एकमात्र साधन है वही; शास्त्रों में कहा गया है की, बिना प्रकृति के पुरुष एक लंगड़े व्यक्ति के जैसे हैं और वही बिना पुरुष के प्रकृति अंधे व्यक्ति के समान ; अतः दोनों के सहयोग से ही जीवन का विकास और आरंभ संभव है ।
ऐसा कहते हैं;
यह जो प्रकृति है यदि उसको स्थूल रूप दिया जाए तो वह एक स्त्री ही है ; जो हमारी माता भगिनी पुत्री और पत्नी के रूप में हमारे चारों तरफ विद्यमान है यदि सांख्य की बात करें तो;
हम सब एक ईश्वर ही हैं ।
एक जननी ही है जो हम सब ईश्वरों
की माता है इसीलिए यह संसार जननी को ईश्वर से सदैव ऊपर रखता है क्योंकि; बिना जननी के अर्थात बिना जीवन दायिनी प्रकृति के संसार में जीवन की उत्पत्ति का कोई अन्य विकल्प नहीं है ।
वही जीवन की उपादेयता को देखें तो जीवन की हर एक व्याधि पीड़ा किसी ना किसी जीवनदायिनी तत्व से ही दूर होती है ;अर्थात यह प्रकृति अपनी ममतामयी स्नेह
किसी ना किसी रूप में हम पर बरसाती रहती है बाल्यकाल से लेकर के जीवन के अंतिम पड़ाव तक यदि जननी साथ ना हो तो जीवन संभव ही नहीं है ,हां यह हो सकता है की जननी स्थूल रूप में हमारे साथ ना हो पर इसका मतलब यह कदापि नहीं की जननी हमारे साथ नहीं है; किंचित बुद्धिजीवी होते हैं जो यह सिरे से नकार देते हैं की हम बिना जननी के भी जीवित रह सकते हैं किंतु; उन्हें यह नहीं पता है की जो जननी है वह केवल माता के रूप में ही हमारे शरीर का निर्माण नहीं करती बल्कि सूक्ष्म प्रकृति की विकृतियां अर्थात पंचमहाभूत आदि अनेकों तत्वों के द्वारा सदैव हमारा लालन पालन करती रहती है।
गुण विशेस विषयक अवधारणा के कारण हम केवल जननी को शरीर निर्माण का साधन समझ बैठते हैं किंतु; इस कारण से यह कदापि नहीं समझना चाहिए की स्त्री केवल संतान उत्पत्ति का साधन मात्र है; यह मानना एक मिथ्या भ्रम के अलावा और कुछ भी नहीं क्योंकि जीवन की उपादेयता जितनी आवश्यक है या जीवन जीने के लिए जितनी चीजों की आवश्यकता है वह कहीं ना कहीं हमें अपनी जननी से ही प्राप्त होते हैं ' चाहे वह अन्नादि विषयक उपयोगी वस्तु हो, और औषधि हो, या विभिन्न प्रकार के उपयोगी वस्तु ।
अतः जननी को कभी असहाय नहीं समझना चाहिए जीवनदायनी जननी के बिना न तो हमारा अस्तित्व है न संसार का इसलिए जननी सबसे महान और सबसे ज्यादा शक्तिशाली है ।।

लेखक—-- अरुण कुमार शुक्ल