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संस्कार ,संस्कृति और संस्कृत को गाली देने वालों ये श्लोक पढ़े हैं कभी🤔🤔🤔😇😇
चलो प्रारंभ करता हूं सबसे पहले उस श्लोक से जिससे ज्यादा मोटिवेशन देने वाला मैंने आज तक कुछ नहीं पढ़ा🤔🤔

"अमंत्राक्षरं नास्ति ,नास्ति मुलामनौषधं,
अयोग्यपुरुष: नास्ति ,योजकस्तत्र दुर्लभः

अर्थात ऐसा कोई अक्षर नहीं है जिससे मन्त्र ना बन सके, ऐसी कोई पादप की जड़ नहीं है जो औषधि ना बन सके,ऐसा कोई पुरुष नहीं है जो अयोग्य हो ,बस इनकी खूबियों को पहचानने वाला दुर्लभ है🤔🤔🤔अर्थात हर कोई योग्य है।

हाँ मैं जानता हूँ तुम आलोचकों को ,तुम आओगे अपना नारीवाद का झंडा लेकर कि देखो तुम्हारी संस्कृत नारियों को योग्य नहीं कह रही ,सिर्फ पुरुषों को कह रही है😇😇

तो चलो कुछ देर के लिए गीता में चलते हैं ,केशव ने स्वयं को मुनियों में कपिल कहा है
अब जानते हो कपिल कौन हैं🤔🤔🤔

कपिल वो हैं जिन्होंने सांख्य दर्शन प्रतिपादित किया था,🤔🤔
सांख्य दर्शन सृष्टि की उत्पत्ति प्रकृति और पुरुष से मानता है,प्रकृति अर्थात वातावरण और पुरुष अर्थात जीव 🤗🤗

तो ऊपर वाले श्लोक में पुरुष शब्द का प्रयोग जीव हेतु है कि कोई अयोग्य नहीं है 🤗🤗🤗

अब सांख्य के बारे में सुनो ,सांख्य दर्शन वही बात कहता है ,जो वर्तमान में विज्ञान मानता है सृष्टि का क्रमिक विकास🤗🤗
और ये डार्विन के प्राकृतिक वरण से बहुत पहले की बात है 🤔🤔🤔

अब बात करता हूं एक अन्य श्लोक की
"अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनमद्वयं,
परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम।।

ये ही बात गोस्वामी जी मानस में कहते हैं परहित सरिस धर्म नहीं भाई,
परपीड़ा सम नहीं अधमाई।।

इसका अर्थ तो आता होगा ,तो मेरी संस्कृति किसी का शोषण करने वाली कैसे हो सकती है🤔🤔🤔🤗🤗

"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"

अर्थात माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी महान है 👏👏👏(ऐसा पावन विचार देने वाली संस्कृत और ऐसे उन्नत संस्कार देने वाली संस्कृति नारी विरोधी कैसे हो सकती है)🤔🤔🤔

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ,रमन्ते तत्र देवता"

यहां पूज्यन्ते का तात्पर्य कोई रोली ,लच्छा ,चावल ,सुपारी नहीं है 😇😇😇 यहाँ स्त्रियों को सम्मान देने की बात कही गयी है🤔🤔

मेरी संस्कृति संसार की प्रथम संस्कृति है,
जो कहती है 'नारी तु नारायणी'

अर्थात नारी ही नारायणी है ,अर्थात नारायण के भीतर विद्यमान शक्ति है,अर्थात नारायणी ना हो तो नारायण कुछ नहीं कर सकते,🤔🤔🤔शिव का अर्द्ध नारीश्वर रूप भी ये ही प्रमाणित करता है☺️☺️


"माता भूमि पुत्रोअहं पृथिव्या "

भूमि माता है और मैं पृथ्वी का पुत्र हूं ,इससे अच्छा राष्ट्रवाद को स्थापित करने वाला आदर्श क्या हो सकता है🤗🤗🤗


"उदारचरितानाम् तु वसुधैव कुटुम्बकम "

उदारचरित वाले लोगो के लिए तो संपूर्ण विश्व ही उनका परिवार है, ऐसी सार्वभौमिक एकता का विचार देने वाली विश्व की एकमात्र संस्कृति है🤔🤔🤔😇😇

इसी संस्कृत ने संस्कार दिए हैं, और इन्ही संस्कारो से संस्कृति बनी है, हो सकता यत्र -तत्र हजारों वर्षों के इतिहास में कई असामाजिक तत्वों ने अपने निजी हितों हेतु अपने को प्राप्त अधिकारों का दुरूपयोग किया हो 🤔🤔🤔
और आडम्बरो को हवा दी हो ☺️☺️

पर आडंबर तभी होता है जब आप अपनी आँखों के आगे कोई आड़(वस्तु, हाथ,विचार) लगा और उस वजह से आपको अंबर दिखाई ना दे.🤗🤗🤗



परंतु ना तो संस्कृत ,ना ही संस्कृति और ना ही भारतीय संस्कार स्त्री विरोधी है और ना ही कोई वर्ण विरोधी है🤗🤗

अब अंतिम श्लोक क्योंकि मैं जानता हूं बहुत लोग होंगे जो लड़ने को उतारू होंगे ,क्योंकि इस बार भी वो आडम्बर में जकड़े हुए हैं और ये आडम्बर है पाश्यात्य संस्कृति का😊😊

"काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमतां,
व्यसनेंन तु मुर्खानम निद्रया कलहेन वा।।

अर्थात काव्य ,शास्त्र और विनोद करके विद्वान् लोग समय व्यतीत करते हैं ,और मुर्ख लोग तो सोते हैं ,नशा करते हैं और झगड़ते हैं😇😇😇🤗🤗

जय माँ भारती ।
वंदे मातरम ।







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