मिस्टर गुलाटी और जायसवाल भाग-२
एक अच्छी बात हुई है कि पार्क के कोने में बने शांति कुटीर के बारे में मुझे पता चला है। शाम सात से नौ बजे तक सभी बिल्डिंगों के सीनियर सिटिजन वहां बैठते हैं। एक दिन मैं वहां यूं ही चला गया था। कुछ बूढ़े हैं जो मेरी तरह हैं और बच्चों के पास पर्मानेंटली रहते हैं या आये गये बने रहते हैं। कुछ के खुद के घर हैं और उनके बच्चे उनके साथ रहते हैं। गुलाटी जैसे भी हैं जो फोर बैड रूम के फ्लैट में सिर्फ मियां बीवी रहते हैं। बता रहे थे कि उनकी सरदारनी अक्सर कनाडा जाती रहती है। वहां उसकी तीन बहुओं में से कोई न कोई प्रेगनैंट होती ही है।
मुझे सिनियर सिटिजन क्लब में शामिल कर लिया गया है। अक्सर शाम को उनके बीच जी बैठता हूं बेशक उनकी दुनिया भर की बातों में शामिल नहीं हो पाता। शांति कुटीर में धूमधाम से सबके जन्मदिन मनाये जाते हैं, जो लोग पीते हैं, वे महीने में एक बार बीयर या दारू पार्टी करते हैं और बरस में एक बार सब सीनियर सिटिजन दिन भर की पिकनिक पर जाते हैं। आज मुझे बहुत शर्म आयी जब फार्म भरते समय मुझसे छ: सौ रुपये देने के लिए कहा गया। मैंने यही बताया कि उधार रहे। बाद में कभी दे दूंगा।
मैं उन सबका उत्साह देख कर हैरान हुआ। कभी स्कूली बच्चों के लिए किताबें जमा की जा रही हैं तो कभी जरूरतमंदों के लिए पुराने कपड़े या दूसरी काम की चीजें जुटायी जा रही हैं। काश, मैं किसी तरह का सहयोग कर पाता।
यहां आने के बाद वरुण ने मुझे कोई भी रकम नहीं लौटायी है। मकान बेचकर जितने भी पैसे मिले थे सारे के सारे उसने उसी दिन अपने नाम पर ट्रांसफर कर लिये थे। रिटायरमेंट पर मिले पैसे कब के खत्म हो चुके हैं।
वरुण ने कभी इस बात की जरूरत नहीं समझी कि वह मुझसे पूछे – पापा, आपको भी तो थोड़ा बहुत पैसों की जरूरत होती होगी। बेशक मेरा मेडिकल इंश्योरेंस उसकी कंपनी की तरफ से है लेकिन उसमें डे केयर शामिल नहीं होता। थोड़े बहुत पैसों की जरूरत हमेशा पड़ती है। इनसान की बीसियों जरूरतें होती हैं। वरुण को अच्छी तरह से पता है कि मेरे पास पैसों का कोई इंतजाम नहीं है। एक दो बार जतलाया तो वह टाल गया। अब मांगने की इच्छा नहीं होती। बेसिक जरूरतें भी टलती रहती हैं।
हम बेशक रोज रात को बैठते हैं, खाना एक साथ खाते हैं, दिन भर की गतिविधियों पर बात करते हैं लेकिन कभी भी यह बात सामने नहीं आती कि पापा आप दिन भर क्या करते हैं। अकेले बोर हो जाते होंगे। कभी पिक्चर या कॉफी शॉप ही चले जाया करें।
एक बार किसी दवा की जरूरत थी, मैं दो तीन दिन तक वरुण को याद दिलाता रहा। आखिर नहीं आयी। उसने कह ही दिया - पापा, आपको पता तो है कि मुझे सिर खुजाने की फुर्सत नहीं मिलती। यहां हर चीज की होम डिलीवरी है। जो भी जरूरत हो आप मंगवा लिया करें। सबके नंबर किचन में चार्ट पर लिखे रखे हैं। अलबत्ता, उसने यह नहीं बताया कि दवा या सामान मंगवाने पर देने के लिए पैसे किस अल्मारी में रखे हैं। इसके बाद मैंने किसी भी चीज के लिए कहना बंद कर दिया है।
हैरान होता हूं कि कई बार दोनों को घर में मेरी मौजूदगी महसूस ही नहीं होती।
मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा हादसा हो गया है। मैं तो बरबाद हो गया। इस बुढ़ापे में ये दिन भी देखना था। पिछले हफ्ते वरुण नहीं रहा। एक कार एक्सीडेंट में ऑन द स्पॉट डेथ हो गई उसकी। वे तीन कलीग पुणे से लौट रहे थे कि उनकी गाड़ी एक ट्रक से टकरा गई और तीनों नहीं रहे। समझ नहीं आ रहा कि खुद को कैसे संभालूं और रोती-बिलखती बहू को कैसे संभालूं। हादसे की खबर मिलते ही दिल्ली से बहू के पेरंट्स वगैरह आ गये थे। अभी यहीं हैं।
जीवन जैसा भी है, वरुण के बिना चलने लगा है। बहू ने अपना ऑफिस ज्वाइन कर लिया है, अलबत्ता उसकी मां यहीं रह गयी है। दोनों से जरूरत भर बात होती है या ना के बराबर होती है। मां बेटी की सुविधा के लिए मैं अब गेस्ट रूम में शिफ्ट कर दिया गया हूं। मैं अपने कमरे में सारा दिन रोता बिलखता रहता हूं। क्या कहूं, किससे कहूं। पहले बहू से जो भी बात होती थी, वरुण के जरिए होती थी और उसके न रहने पर उससे सीधे संवाद करने की स्थिति ही नहीं आ पाती। कभी कभार पोते को गोद में ले कर खुद बहलने और उसे बहलाने की कोशिश करता हूं। हे भगवान, मैंने ऐसा बुढ़ापा तो नहीं चाहा था।
गेस्ट रूम में आने से बहुत तकलीफ हो गयी है। उसमें कोई बालकनी नहीं है। सिर्फ एक खिड़की है और ये कमरा पूरे घर से अलग है।
पता चला है कि पिछले दिनों बहू को वरुण के ऑफिस में बुलाया गया था। वह अपनी मां के साथ गयी थीं। मुझे नहीं ले जाया गया। न ही वापिस आने के बाद बताया ही गया कि वहां क्या बात हुई और सेटलमेंट के बाद क्या तस्वीर बनती है।
अभी भी लगातार यही जतलाया जा रहा है कि बहू को अपनी अकेले की सेलेरी से मकान की बकाया किस्तें और ब्याज चुकाने में बहुत तकलीफ हो रही है। वरुण ने कुछ और भी लोन ले रखे थे। उसके फंड से और बीमा से जो पैसे मिले थे, वे काफी होते हुए भी नाकाफी हैं। बहू का एनुअल पैकेज बीस लाख से ज्यादा है, इसके बावजूद दिन रात पैसों की कमी का...
मुझे सिनियर सिटिजन क्लब में शामिल कर लिया गया है। अक्सर शाम को उनके बीच जी बैठता हूं बेशक उनकी दुनिया भर की बातों में शामिल नहीं हो पाता। शांति कुटीर में धूमधाम से सबके जन्मदिन मनाये जाते हैं, जो लोग पीते हैं, वे महीने में एक बार बीयर या दारू पार्टी करते हैं और बरस में एक बार सब सीनियर सिटिजन दिन भर की पिकनिक पर जाते हैं। आज मुझे बहुत शर्म आयी जब फार्म भरते समय मुझसे छ: सौ रुपये देने के लिए कहा गया। मैंने यही बताया कि उधार रहे। बाद में कभी दे दूंगा।
मैं उन सबका उत्साह देख कर हैरान हुआ। कभी स्कूली बच्चों के लिए किताबें जमा की जा रही हैं तो कभी जरूरतमंदों के लिए पुराने कपड़े या दूसरी काम की चीजें जुटायी जा रही हैं। काश, मैं किसी तरह का सहयोग कर पाता।
यहां आने के बाद वरुण ने मुझे कोई भी रकम नहीं लौटायी है। मकान बेचकर जितने भी पैसे मिले थे सारे के सारे उसने उसी दिन अपने नाम पर ट्रांसफर कर लिये थे। रिटायरमेंट पर मिले पैसे कब के खत्म हो चुके हैं।
वरुण ने कभी इस बात की जरूरत नहीं समझी कि वह मुझसे पूछे – पापा, आपको भी तो थोड़ा बहुत पैसों की जरूरत होती होगी। बेशक मेरा मेडिकल इंश्योरेंस उसकी कंपनी की तरफ से है लेकिन उसमें डे केयर शामिल नहीं होता। थोड़े बहुत पैसों की जरूरत हमेशा पड़ती है। इनसान की बीसियों जरूरतें होती हैं। वरुण को अच्छी तरह से पता है कि मेरे पास पैसों का कोई इंतजाम नहीं है। एक दो बार जतलाया तो वह टाल गया। अब मांगने की इच्छा नहीं होती। बेसिक जरूरतें भी टलती रहती हैं।
हम बेशक रोज रात को बैठते हैं, खाना एक साथ खाते हैं, दिन भर की गतिविधियों पर बात करते हैं लेकिन कभी भी यह बात सामने नहीं आती कि पापा आप दिन भर क्या करते हैं। अकेले बोर हो जाते होंगे। कभी पिक्चर या कॉफी शॉप ही चले जाया करें।
एक बार किसी दवा की जरूरत थी, मैं दो तीन दिन तक वरुण को याद दिलाता रहा। आखिर नहीं आयी। उसने कह ही दिया - पापा, आपको पता तो है कि मुझे सिर खुजाने की फुर्सत नहीं मिलती। यहां हर चीज की होम डिलीवरी है। जो भी जरूरत हो आप मंगवा लिया करें। सबके नंबर किचन में चार्ट पर लिखे रखे हैं। अलबत्ता, उसने यह नहीं बताया कि दवा या सामान मंगवाने पर देने के लिए पैसे किस अल्मारी में रखे हैं। इसके बाद मैंने किसी भी चीज के लिए कहना बंद कर दिया है।
हैरान होता हूं कि कई बार दोनों को घर में मेरी मौजूदगी महसूस ही नहीं होती।
मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा हादसा हो गया है। मैं तो बरबाद हो गया। इस बुढ़ापे में ये दिन भी देखना था। पिछले हफ्ते वरुण नहीं रहा। एक कार एक्सीडेंट में ऑन द स्पॉट डेथ हो गई उसकी। वे तीन कलीग पुणे से लौट रहे थे कि उनकी गाड़ी एक ट्रक से टकरा गई और तीनों नहीं रहे। समझ नहीं आ रहा कि खुद को कैसे संभालूं और रोती-बिलखती बहू को कैसे संभालूं। हादसे की खबर मिलते ही दिल्ली से बहू के पेरंट्स वगैरह आ गये थे। अभी यहीं हैं।
जीवन जैसा भी है, वरुण के बिना चलने लगा है। बहू ने अपना ऑफिस ज्वाइन कर लिया है, अलबत्ता उसकी मां यहीं रह गयी है। दोनों से जरूरत भर बात होती है या ना के बराबर होती है। मां बेटी की सुविधा के लिए मैं अब गेस्ट रूम में शिफ्ट कर दिया गया हूं। मैं अपने कमरे में सारा दिन रोता बिलखता रहता हूं। क्या कहूं, किससे कहूं। पहले बहू से जो भी बात होती थी, वरुण के जरिए होती थी और उसके न रहने पर उससे सीधे संवाद करने की स्थिति ही नहीं आ पाती। कभी कभार पोते को गोद में ले कर खुद बहलने और उसे बहलाने की कोशिश करता हूं। हे भगवान, मैंने ऐसा बुढ़ापा तो नहीं चाहा था।
गेस्ट रूम में आने से बहुत तकलीफ हो गयी है। उसमें कोई बालकनी नहीं है। सिर्फ एक खिड़की है और ये कमरा पूरे घर से अलग है।
पता चला है कि पिछले दिनों बहू को वरुण के ऑफिस में बुलाया गया था। वह अपनी मां के साथ गयी थीं। मुझे नहीं ले जाया गया। न ही वापिस आने के बाद बताया ही गया कि वहां क्या बात हुई और सेटलमेंट के बाद क्या तस्वीर बनती है।
अभी भी लगातार यही जतलाया जा रहा है कि बहू को अपनी अकेले की सेलेरी से मकान की बकाया किस्तें और ब्याज चुकाने में बहुत तकलीफ हो रही है। वरुण ने कुछ और भी लोन ले रखे थे। उसके फंड से और बीमा से जो पैसे मिले थे, वे काफी होते हुए भी नाकाफी हैं। बहू का एनुअल पैकेज बीस लाख से ज्यादा है, इसके बावजूद दिन रात पैसों की कमी का...