मनो:गुण न तत्र।
न मनः
मनुष्यः यथा इच्छति तथा ढालितुं शक्नोति
द्वेषः, प्रेम, पूर्णः, अपूर्णः
इत्यादि।
शिव ब्रम्ह से मनुष्य के मन की इच्छा बताते
मनुष्य प्रेम नहीं जाने हर बार उलाहना करे
देव को दोषी बताए
बनाया ही क्यू मानुष क्या इच्छा
ब्रम्ह देव मुस्काय बोले
मनुष्य को मन दिया
जिसे वॉ किसी भी...
मनुष्यः यथा इच्छति तथा ढालितुं शक्नोति
द्वेषः, प्रेम, पूर्णः, अपूर्णः
इत्यादि।
शिव ब्रम्ह से मनुष्य के मन की इच्छा बताते
मनुष्य प्रेम नहीं जाने हर बार उलाहना करे
देव को दोषी बताए
बनाया ही क्यू मानुष क्या इच्छा
ब्रम्ह देव मुस्काय बोले
मनुष्य को मन दिया
जिसे वॉ किसी भी...