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आखरी ख़त
ये शायद उसका आखरी ख़त था, मेरे हाथ कांप रहे थे, उसमें लिखे एक एक शब्द जैसे मेरी कानों में गूंज रहे थे, "कल लड़के वाले आ रहे हैं, सब कुछ तो लगभग तय हो गया है... बस मुझे देखेंगे और गोद भराई की रश्म पूरी करेंगे। पता है, लड़का बहुत अच्छा है, बैंक में मैनेजर है, बहुत स्मार्ट भी हैं"...और न जाने क्या क्या... मेरी आंखों से बहते आंसूओं की बूंद कागज पर लिखे शब्दों पर पड़ रहे थे... जैसे उसे धुलकर मेरे नसीब को बदलने की कोशिश कर रहे हों, जैसे ये समझाने की कोशिश कर रहे हों कि ये सपना है, एक बुरा सपना।
धुंधलाई आंखों के आगे वो मंजर घूम गया जब उसने मेरा हाथ अपने हाथ में पकड़ा था, और मेरी आंखों में एकटक देखते हुए बोली थी "कभी नहीं छोडूंगी आपका हाथ और साथ, चाहे दुनिया कुछ भी कर ले, बस आप आगे बढ़िए, मेरा साथ हमेशा रहेगा" और मैंने उसे आगोश में ले लिया था, ना जाने हम कब तक यूं ही खोए रहे, एक दूसरे में। हम मिलते और दुनियां जहां से बेखबर बस खो जाते एक दूसरे में। मैं चाहता था वो खूब तरक्की करे, और वो चाहती थी मैं बहुत सफल इंसान बनूं, कहती थी "आप की ताकत मैं बनूंगी, हर सुख दुख में साथी हूं आपकी, आपको बहुत सफल इंसान बनना है, इतना ऊपर जाना है कि मुझे भी सिर उठाकर देखने में गर्व हो", उस एक क्षड़ मैं खुद को दुनिया का सबसे तकदीरवाला इंसान समझता था, लगता था मैं कुछ भी कर सकता हूं, सफलता को हासिल कर सकता हूं। अचानक हवा के झोंके से फड़फड़ाते पन्नों ने मेरी तंद्रा भंग की, अंतर्मन ने सवाल किया "ये हकीकत है जो मेरी हाथों में है या वो जो था ?", मन के किसी कोने से आवाज आई 'नहीं नहीं... सपना तो वो था, जो अब है ही नहीं, बस एक गुजरा हुआ पल है एक सपने की तरह, बस एक हसीन सपने कि तरह....।'


@rohitmishra
© Rohit Mishra