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अंधविश्वास: समाज का बाधक
*अंधविश्वास*
शाला मे दीपावली की छुट्टी थी। बच्चे त्योहार मनाने मे जुटे थे। रचना मैडमजी भी अपने घरेलू कार्य मे व्यस्त थी।
एक दिन मैडम की मोबाइल का घंटी बजी। उधर से बात करने वाला आकाश नाम का बालक था। आकाश से बात कर मैडमजी सन्न रह गयी।
मैडमजी तुरंत घर से निकल पड़ी और मोहनके घर जा पहुंची। बात दरअसल ये था कि मोहन जो कक्षा आठवीं का विद्यार्थी था उसका देहान्त हो चुका था।
घर मे मातम फैला हुआ था। रचना मैडमजी के आंखों के सामने अंधकार फैल चुका। अभी सात दिन पहले ही मोहन वृक्षारोपण कार्यक्रम मे बच्चो के साथ बढ़-चढ़ कर भाग लिया था।मैडमजी कुछ नही समझ पा रही थी।एक बालक का इस तरह देहान्त हो जाने से पूरा गांव स्तब्ध था। मोहन के घरवाले पूरा इल्जाम पड़ौसी परिवार को थोप रहे थे।उनका कहना था कि मोहन को किसी प्रकार का कोई बीमारी नही था। पड़ौसी परि्वार के किये गये जादू-टोना के कारण मोहन का देहान्त हो गया। यह सुन मैडमजी इस परिस्थिति मे न कुछ बोल पा रही थी न ही हजम कर पा रही थी। वह कैसे समझाये कि ये हकीकत नही बल्कि अंदुरनी कोई बिमारी हो जाने के कारण बच्चे का देहान्त हो गया था।
कुछ दिन बीत गया। शाला निश्चित तिथि मे खुल गयी। बच्चों के मन मे जादू-टोना से मोहन के मौत घर कर चुका था।सभी बच्चों के मन मे जादू- टोना घर चुका था।
मैडम अब शांत नही रह पायी। बात के तह तक जाने के लिए वह मोहन के प्रिय मित्र रमेश से बातचीत की। जिससे यह बात सामने आई कि मोहन अक्सर पेट दर्द का शिकायत करता था परन्तु परिवार वाले इस बात से अनभिज्ञ थे । अंत मे एक दिन पेट दर्द तेज हो जाने से वह सहन नही कर पाया। मैडमजी बच्चों को इस तरह जादू-टोना जैसे बातों से दूर रहने की हिदायत दी एवं बीमार पड़ने से डाक्टर की सलाह लेने की बात समझायी।मैडम सभी बच्चों को यह भी समझायी कि जब भी आप को शरीर मे किसी तरह की दिक्कतें महसुस हो आप तुरंत अपने माता- पिता या अपने शिक्षकों से बताये ताकि बीमारी बड़ न जाए।हमें बीमारी छुपानी नही चाहिए। हमें जादू- टोना जैसे अंधविश्वास से दूर रहना चाहिए।
सीख - हमे इस तरह की अंधविश्वास को जड़ से उखाड़ फेकना चाहिए।
रीता चटर्जी
खोंगापानी
कोरिया।(छत्तीसगढ़) 🖋️🖋️🖋️🖋️🖊️🖊️