पाँच लाख
बरखा इंटर परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास कर एमबीबीएस का पढ़ाई करने दिल्ली चली गई। उसने नीट में भी टॉप मारा था लेकिन सरकारी कॉलेज में उसको सीट नहीं मिल सका । किसी तरह बरखा के बाबा रघु एक छोटे प्राइवेट कॉलेज में नाम लिखा देते हैं । बरखा का यह सपना था कि वह डॉक्टर बने और वह अपने इस स्वप्न से प्रेम भी करती थी क्योंकि वह सोए या जागे बस अपने आपको वाइट शर्ट और गले में लटके स्टैथौस्कोप के साथ अपने को देखती थी जिसके हाथ में दूसरे को जीवन देने की शक्ति थी ।बरखा के बाबा रघु एक पोस्ट मास्टर थे जो लगभग महीने के 10,000 कमाते थे और वह सारे पैसे घर के सामान और बरखा के शीश को देने में खर्च हो जाता था।
अगली सुबह बरखा जल्दी उठती है ,सुबह का सारा काम कर नाश्ता बना और नाश्ता खाकर कॉलेज चल देती है। आज बरखा का कॉलेज में पहला दिन होने वाला था । जिस रास्ते से वो जा रही थी वहां कई छोटे-छोटे स्टाल लगे थे ।
कहीं मिठाई के , कुछ चार्ट -समोसे के और आदी - आदी तरह के स्टॉल थे ।बरखा एक डॉक्टर के नजरिए से देखती और मन में बड़-बड़ाती -" कैसा मार्केट है, कोई हाइजीन नहीं। दुकान भी कितने गंदे हैं । "हु विल इट एट दिस प्लेस ?"
बरखा यही सब सोच पुल पर से ऑटो पकड़ने के लिए सीढ़ी चढ़ने लगी ।सीढ़ी चढते समय उसे कई रोड़ो का सामना करना पड़ा -पहला, लोग अनडिसीप्लिनड वे में चल रहे थे ।दूसरा, लकुछ लोग साइकिल पुल के रेलिंग में लगा देते हैं और तीसरा पता नहीं कितने भिखारी वहां पर बैठे रहते थे जिनके कारण पूरा पुल कन्जेस्टेड अर्थात जमावड़ा हो जाता था। बरखा किसी तरह कॉलेज पहुंची कॉलेज की प्रिंसिपल एन.के.चौधरी बरखा को पहचानती थी और उन्होंने बरखा को पहले पढ़ाया भी था। खैर, बरखा कॉलेज के डिस्मिसल के बाद वापस घर जाने लगती है ।जब वह पुल से उतरने लगती है तो एक भिखारी उसका पीछा करने लगता है -"दीदी -दीदी कुछ पैसे दे दो ।बहुत भूखा हूं ।दीदी" बरखा गरीब को पैसे देने के सख्त खिलाफ थी लेकिन उस भिखारी के गिड़-गिड़ाने के कारण बरखा ने उसे ₹10 दे दिये । वह भिखारी लगभग 55 साल का होगा उसके शरीर में गंदगी और बदबू आ रहा था मानो कई सालों से वह नहाया नहीं है। उसके पेट के दाहिने तरफ बहुत गहरा चीरा था...
अगली सुबह बरखा जल्दी उठती है ,सुबह का सारा काम कर नाश्ता बना और नाश्ता खाकर कॉलेज चल देती है। आज बरखा का कॉलेज में पहला दिन होने वाला था । जिस रास्ते से वो जा रही थी वहां कई छोटे-छोटे स्टाल लगे थे ।
कहीं मिठाई के , कुछ चार्ट -समोसे के और आदी - आदी तरह के स्टॉल थे ।बरखा एक डॉक्टर के नजरिए से देखती और मन में बड़-बड़ाती -" कैसा मार्केट है, कोई हाइजीन नहीं। दुकान भी कितने गंदे हैं । "हु विल इट एट दिस प्लेस ?"
बरखा यही सब सोच पुल पर से ऑटो पकड़ने के लिए सीढ़ी चढ़ने लगी ।सीढ़ी चढते समय उसे कई रोड़ो का सामना करना पड़ा -पहला, लोग अनडिसीप्लिनड वे में चल रहे थे ।दूसरा, लकुछ लोग साइकिल पुल के रेलिंग में लगा देते हैं और तीसरा पता नहीं कितने भिखारी वहां पर बैठे रहते थे जिनके कारण पूरा पुल कन्जेस्टेड अर्थात जमावड़ा हो जाता था। बरखा किसी तरह कॉलेज पहुंची कॉलेज की प्रिंसिपल एन.के.चौधरी बरखा को पहचानती थी और उन्होंने बरखा को पहले पढ़ाया भी था। खैर, बरखा कॉलेज के डिस्मिसल के बाद वापस घर जाने लगती है ।जब वह पुल से उतरने लगती है तो एक भिखारी उसका पीछा करने लगता है -"दीदी -दीदी कुछ पैसे दे दो ।बहुत भूखा हूं ।दीदी" बरखा गरीब को पैसे देने के सख्त खिलाफ थी लेकिन उस भिखारी के गिड़-गिड़ाने के कारण बरखा ने उसे ₹10 दे दिये । वह भिखारी लगभग 55 साल का होगा उसके शरीर में गंदगी और बदबू आ रहा था मानो कई सालों से वह नहाया नहीं है। उसके पेट के दाहिने तरफ बहुत गहरा चीरा था...