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सुकून
(काल्पनिक कहानी)
वो अजीब है बहुत अजीब। बस मुस्कुराता रहता है। अगर कभी मैं पूछ लूँ की इतना मुस्कुराते क्यों हो..?
तो बड़ी ही बहकी बातें करता है।
कहता है तुम्हारे कदम जैसे ही मेरी दहलीज़ पर पड़ते हैं, मैं बेवजह ही मुस्कुरा जाता हूँ।
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'कभी मेरी तारीफ़ ही कर दिया करो'.. मैंने तुनककर कहा! 'तुम्हें तारीफ़ की क्या ज़रूरत तुम ओस हो.. फूलों पर बिखरी हुई ओस'.. उसने मुझे क्यारी में लगे फूलों को दिखाते हुए कहा!
'मुझे तुम्हारी बातें समझ नहीं आती'.....