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सुकून
(काल्पनिक कहानी)
वो अजीब है बहुत अजीब। बस मुस्कुराता रहता है। अगर कभी मैं पूछ लूँ की इतना मुस्कुराते क्यों हो..?
तो बड़ी ही बहकी बातें करता है।
कहता है तुम्हारे कदम जैसे ही मेरी दहलीज़ पर पड़ते हैं, मैं बेवजह ही मुस्कुरा जाता हूँ।
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'कभी मेरी तारीफ़ ही कर दिया करो'.. मैंने तुनककर कहा! 'तुम्हें तारीफ़ की क्या ज़रूरत तुम ओस हो.. फूलों पर बिखरी हुई ओस'.. उसने मुझे क्यारी में लगे फूलों को दिखाते हुए कहा!
'मुझे तुम्हारी बातें समझ नहीं आती'.. मैंने उसकी ओर देखकर कहा.. मगर वो कुछ बोला नहीं केवल मुस्कुरा दिया।
कभी लगता है जैसे मेरी तरह यह भी आधा पागल है।
अलमारी को साफ़ करते हुए मैंने कहा.. 'ये पुराने कपड़े किसी को दे क्यों नहीं देते'..
वो फिर मुस्कुरा दिया, कुछ बोला नहीं।
हाँ! उसकी यह एक अजीब आदत है। मेरी बातों पर कहता कुछ नहीं बस मुस्कुराता रहता है।
'कुछ बोलो भी'.. मैंने एक शर्ट उस पर फेंकते हुए कहा!
वो हँसते हुए बोला.. 'मुझे पुरानी चीजों से प्रेम है..
तुम चाहो तो दे दो इन्हें किसी को'।
मैंने कुछ नहीं कहा.. बस वापस सबकुछ जमाने लगी।
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'तुम उदास हो, कुछ पूछना चाहती हो'.. उसने मेरे करीब आकर पूछा।
'हाँ.. तुम मुझसे कितना प्रेम करते हो'? मैंने दबी आवाज़ में पूछा।
'बिल्कुल उतना, जितना तुम प्रकृति से करती हो..
अपार प्रेम'..वो मुस्कुराकर बोला।
'मतलब'..? मैंने जिज्ञासा से पूछा!
'मतलब यह की जैसे तुम पेड़-पौधों, फूलों को देख चहकने लगती हो, तितली को कौतूहल से देखती हो। वैसे ही मैं देखता हूँ तुमको.. कौतूहल से.. वैसे ही मैं भी तुम्हें देख ख़ुश हो जाता हूँ'.. वो मुस्कुराकर बोला।
'अच्छा! तुम्हें इन सब से क्या मिलता है'..? उसने सवाल किया।
'बहुत सुकून'.. मैंने तुरन्त ही ख़ुश होते हुए कहा।
'मुझे भी ऐसा ही सुकून मिलता है तुम्हें देख कर'.. उसने मेरे माथे को चूमकर कहा।
'जब हम साथ होंगे ना, तो तुम पेड़-पौधों से, फूलों से घर को सजाना, और मैं तुमसे मेरे जीवन को सजाऊंगा'.. यह कहकर उसने मेरे हाथ थाम लिए..
हाँ! और अब मैं मुस्कुरा रही थी।
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