...

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ज़िन्दगी एक पहेली...
कल एक झलक ज़िंदगी को देखा,
वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी,

फिर ढूँढा उसे इधर उधर
वो आँख मिचौली कर मुस्कुरा रही थी,

एक अरसे के बाद आया मुझे क़रार,
वो सहला के मुझे सुला रही थी

हम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे से
मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी,

मैंने पूछ लिया- क्यों इतना दर्द दिया
कमबख्त तूने,
वो हँसी और बोली- मैं जिंदगी हूँ पगले
‌तुझे जीना सिखा रही थी .

कभी लगता है इस जिन्दगी में खुशियां बेशुमार है,
तो कभी लगने लगता है जिन्दगी ही बेकार है।

कभी लगता है लोगो में बहुत प्यार है,तो कभी लगता है रिश्तों में सिर्फ दरार है ।

कभी लगता है हम भी जिन्दगी जीने के लिए बेकरार है ,तो कभी कभी लगता है सिर्फ हमे मौत का इंतजार है ।

कभी लगता है हमको भी उनसे प्यार है,तो कभी लगता है सिर्फ प्यार का बुखार है।

कभी लगता है शायद उनको भी हमसे इजहार है,फिर लगता है हम दोनों में तो सिर्फ तकरार है ।

कभी लगता है सब अपने ही यार है,फिर लगता है इनमें भी छिपे गद्दार है ।

कभी लगता है कितना प्यारा संसार है ,तो कभी लगता है ये संसार बस संसार है ।#WritcoStoryPrompt118
Why do we often look for someone to blame when there is a problem? Tell us in story writing what you think about it.
© suthar rs