...

26 views

कब जाएगी जाति
अभी चंद्रपाल की माँ चूल्हें पर रोटियाँ बनाकर हटी ही थी अपने पति और बच्चों को खाने के लिए आवाज़ देने के लिए तभी अचानक उसने थाली में पड़ी रोटियों की तरफ देखा तो उसे ख़्याल आया कि आज फिर उसके परिवार को जीने लायक ही खाना मिलेगा। यूँ तो कहने को बस्ती के सारे लोग रामू को उसकी चौड़ी काठी के कारण चौधरी कहकर बुलाते थे पर असलीयत में तो उसके घर में खाने को दाने भी न थे। पास गाँव के एक बड़े ज़मीदार के खेतों पर काम करके वह अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। वैसे तो रामू के जात वालों के लिए सरकार ने बहुत सी योजनाएँ चला रखी है पर आज भी उसकी उसके जात के लोगों को कुछ लोग घृणा भरी नजरों से देखते है। रामू ने कई बार चंद्रपाल को सामाजिक बातों से अवगत करवाया लेकिन पढ़ाई लिखाई में अच्छा होने के कारण उसे अपने पिता की बातें की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया क्योंकि कक्षा के सभी बच्चें सदैव बिना संकोच पढ़ाई लिखाई में उसकी मदद लिया करते थे। अपनी इसी अच्छी पढ़ाई लिखाई के कारण विद्यालय के कुछ शिक्षक भी उसका मनोवल सदा बढ़ाते रहते थे। उसकी पढ़ाई की लगन को देखते हुए उसे आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप पाने में भी मदद की और उसके घरवालों को समझ बुझा कर उसे शहर के एक प्रसिद्ध कॉलेज में दाखिला दिलवा दिया। एक गुरुजी ने तो अपनी पहचान वालें से संपर्क करके चंद्रपाल की परिस्थिति के अनुसार उसके रहने और खाने पीने का भी इंतज़ाम करवा दिया था। जिस व्यक्ति ने कभी तन पर पूरे कपड़े न पहनें हो और जिसे कभी पेटभर खाना भी नसीब न हुआ हो उसके लिए शहर की ये चकाचौंध भरी ज़िन्दगी किसी स्वर्ग से कम न थी। समय अपनी मदमस्त चल से चले जा रहा था और चंद्रपाल भी अपनी ज़िंदगी को एक अलग ढँग से जीने लगा था। अब उसकी दोस्ती शहर के कुछ सम्पन घर के बच्चों से भी हो गई थी जो उसकी ही कक्षा में पढ़ते थे। एक दिन चंद्रपाल अपने सभी दोस्तों के साथ बैठ कर गप्पें मार रहा था कि तभी उनमें से एक बोल बैठा कि देश का प्रधान सेवक उसी व्यक्ति को होना चाहिए जो सिविल सेवा परीक्षा में प्रथम स्थान पाये। इसी बात पर एक दूसरा लड़का तंज कसते हुए उस साल की सिविल सेवा परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले लड़के का नाम लेकर बोला तो क्या चाहते हो उस लड़के को प्रधान सेवक के पद पर बैठा दे। उस लड़के के तंज भरे इन बोलों को सुनकर उसे उसके पिता की समझाई हुए हर बात उसके दिमाग में किसी बिजली के जैसे आकर चली गई और वह स्तब्ध रह गया क्योंकि प्रथम स्थान पाने वाला वह लड़का चंद्रपाल की ही जात का था। तब उसे अहसास हुआ कि जिन लड़कों को वह अपना शुभचिंतक समझता था वह भी उसकी जात के लोगों से उतनी ही घृणा करते है जितनी कि उनके पूर्वज किया करते थे। इसी तरह बातों का सिलसिला चलता रहा और सभी लड़के उस बात पर मज़े लेते रहे और बेचारा चंद्रपाल उनके बीच में स्तब्ध सा बैठा रहा। सब के चले जाने के बाद चंद्रपाल ने मन में अपने पिता से माफ़ी माँगी और अपनी पढ़ाई लिखाई के लिए धन्यवाद दिया जिसने आजतक उसे समाज की इस रूढ़िवादित से दूर रख रखा था।

© feelmyrhymes {@S}