विध्वंश , श्रेष्ठ लीला....
अनादि परम ईश्वर, तेरे अधीन ही संसार की प्रलाणी संचालित है।
• बुद्धि की अधिकता सदैव ही अंत की ओर हमें अग्रसर करती है ।
प्रत्येक पग जीवन के हमें बड़ी ही सूझ बूझ और अनुभव के अधीन होकर ही करने चाहिए किंतु यह भी अनय स्वरूप है कि प्रत्येक निर्णय में हमारा मस्तिष्क ही हमारे निर्णय का स्वामित्व करता है !
• तीन माहा गुरुओं के बीच यहीं चर्चा प्रारब्ध थी की सबसे बड़ा विध्वंश कोनसा था !
महागुरु निहाद- मैंने जब विध्वंश देखा था आर्फेज का , वह आविश्वनीय ही था , मानो शांति की स्थापना करने हेतु स्वयं ही ईश्वरीय शक्ति पृथ्वी पर आ गई हो ।
महागुरु आर्शाह - इस बात का ज्ञान किसे नही है कि उस युद्ध में स्वयं ही आरव ने शस्त्र उठाए थे तो वह सर्वश्रेष्ठ विध्वंश क्यूं ना रहा हो किंतु मैं एक ऐसा श्रेष्ठ विध्वंश का साक्षी है जिसमे उस अनादि की इच्छा के अनुसार असामान्य के हाथो से येन कंकड़ की शक्तियां अंकुश हुई थी ।
तीनों महागुरुओ का तर्क ही हो रहा है था की कौन सा विध्वंश है जो सर्व विध्वंशक था और जिसकी ज्ञाती किसी भी ज्ञान पुस्तक या भविष्य वाणी में न थी ! इनका तर्क प्रारंभ ही था कि क्षण भंगुर में वे सभी अपने स्थान से लुप्त हो मानो भविष्य की सर्व विनाशी परिणाम के स्थल पर आ पहुंचे जहां संग्राम और विनाश अकल्पनीय था ।
तीनो महागुरुओ ने मस्तक जमीन पर रख एक स्वर में उस एक ईश्वर की कृति की और कहा हे आदि और अनादि, प्रत्येक सीमा और नियम से आविलाप , प्रत्येक के सृजन हार और विनाशक , हे अनादि कृपा करे ! यह कैसा विध्वंश है जिसके अंश में आरिफिन के क्रोध का भी समावेश है तो सिओन के धीरज का गरिमा एक भाग में जिया का ऊर्ध्व शक्ति स्त्रोत तो किसी अन्य भाग पर नई रचना का अंश !
• ए पालन हार हम तेरी लीला को समझने में असमर्थ है और बिना तेरे आशीष के हम व्यर्थ , कृपा हमारा मार्गदर्शन करे और इस महा विध्वंश के पीछे का कारण और इसमें हमारी आवश्कता का संकेत करे ।
प्रत्येक का ऐसा आविलापी विध्वंश यह मानो संसार का ही अंत हो।
उस आनादि परमात्मा जिसका अस्तित्व जन्म और मृत्य काल से पवित्र उसकी लीला प्रदर्शित हुई और अपनी नियमानुसार उसने संकेत दिया और कहा ," महा गुरुओं तुम्हारा जन्म और तुम्हारी भूमिका मुझी से है और तुम्हे भी मुझी में आकर विलय हो जाना किंतु क्या तुम्हे यह प्रिय नही की तुम इस घटना क्रम का एक अंग बनो!
तीनों महा गुरुओं ने शीष को भूमि से उठाकर कहने लगा ," यह हमारा सौभाग्य है की हम इस महा विध्वंश में अंभिज्ञ भाग बनने से ।
हे अनादि शक्ति हमे संकेत दे हमारे कार्यों का और उत्तरदायित्व का ताकि हम उन्हें वहन करने में सक्षम हो ।
यहा संग्राम प्रारंभ ही था और मध्य में अदृश्य थे तीन महा गुरु जो भूत काल से आए थे भविष्य के कार्यों को सम्पूर्ण करने ! तीनो ने आनादि ईश्वरीय संकेत अनुसार कल्पना को सफल किया और आकाश की ओर वहन कर पुनः अपने समय काल में आने का प्रयास कर प्रस्तुत उसी स्थान पर आ गए । तीनो महा गुरु अब भी उसी विध्वंश के आयोजन और उसके निर्वाह कार्य के बारे में सोच रहे थे , कि तभी सभी महा गुरुओं द्वारा योजन हुआ की हमे आरव से सहायता हेतु वामिनो की ओर जाना चाहिए कारण की यदि कही उस ईश्वर की लीला सार केंद्र है तो वामिनो उनमें से एक !
( सभी के सधिन्न विचार के पश्चात वे वामिनो की ओर प्रस्थान करते है )
यहां नौ दैत्य शक्तियों का जन्म निकट ही था जिनका जीवन , जीवनकाल और मृत्यु यह समस्त संसार को पुनः उन श्रेष्ठ , जीवन निर्वाह और उस एक ईश्वर की शरण में ले जायेगी । नौ दैत्य के गुण क्रमानुसार - क्रोध, द्वेष , ईर्ष्या , अहंकार , स्वामित्वता , निर्लज्जता , लोभ , शक्ति और आलस्य ये सभी विकार है मानव और लिहास के जीवन का और इन्ही की संभाग्यता से संपूर्णता का नीड से विनाश हो जाता है ।
यहां वामिनो में निनारण प्रतियोगिता का अंतिम चरण प्रारंभ था जिसके विजयता को वामिनो के मिटाय समूह के मुखिया के स्वरूप में नियुक्त किया जाता ! यहां तीनों महा गुरु अपनी निच्छल यात्रा के सांत्वना और वामिनो के दुर्लभ मार्ग से प्रशस्त हो गार महल में प्रस्थान करते है । वामिनो का परिचय किसी से नही अदृश्य यह माया और जादू का मानो उदगम स्थानों में से एक हो । यहां रचनाये पिछले से अनभिज्ञ और परिणाम यह आरव आधारित। वामिनो में तीनो महा गुरु गार महल के द्वार पर खड़े द्वार पालो को स्वयं के लिए द्वार खोलने के लिए कहते है किंतु उनकी आवशिष्टा और शक्ति के तेजाश्व से बारह द्वार पाल द्वार ना खोलते हुए उन्हें उत्तर देते है " हमे ज्ञात नही की आप तीनो कोन है , कृपा अपना सामान्य और सरल परिचय देते हुए अपने आने का कारण बताए अपितु आरव के पुनः वामिनो महल में लौटना की प्रतीक्षा कर " ।
यह उत्तर तीनो सम्मानित गुरुओं के लिए आचार्य पूरक था कारण की ज्ञान और एकाग्रता के स्वामित्व पश्चात बड़े बड़े व्यक्तित्व धारण मनुष्य और राजा उनकी प्रतीक्षा करते किंतु आज की घटना विरुद्ध थी !
महा गुरु आर्शाह - श्रेष्ठ विकल्प यही होगा कि हम आरव के पुनः आगमन की प्रतीक्षा करे कारण की बिना उनकी अनुमति स्वयं ही आरव अंश महल की भीतरी स्थानों में प्रवेश नही कर सकते तो हमारे लिए भी यही श्रेष्ठ होगा ! और प्रतीक्षा यह तो सर्वगुणों में से एक है ।
महा गुरु निनाद - विचार और मत तुम्हारा भार युक्त है किंतु प्रिय हमारी स्थिति प्रतीक्षा की नही है श्रेष्ठ यही होगा की हम आरव को वामिनो के अन्य स्थान पर ढूंढे।
महा गुरु साहत - महा गुरुओं, तर्क के स्थान पर सदैव ही युक्ति को स्थान देना चाहिए और विवाद से पहले ही निवारण । श्रेष्ठ यही होगा कि हम सभी अपने दूतो को वामिनो के अन्य स्थानों और संभव स्थान पर भेजे और स्वयं ही उन दूतो या आरव के पुनः आगमन तक ईश्वर की कीर्ति में मुग्ध हो अपने स्तरों में वृद्धि करे ।
महा गुरु साहत के मत से अन्य गुरु सहमत हो सभी अपने वैभव दूतो को प्रतियोगिता स्थान और अन्य स्थानों के ओर जाने का आदेश देते है और स्वयं ईश्वरीय कीर्ति में मन मुग्ध हो आरव के आगमन की प्रतिक्षा करने लगते है !
यहां गुरु दूत आरव के प्रतियोगिता स्थान और अन्य स्थानों की ओर घूमते है और महा गुरु आदेशानुसार आरव को महा गुरुओं के आगमन और उनका संदेश देता है । यहां निनारण प्रतियोगिता अंत क्रमों में थी और विचित्र माया जाल को लांघ कर कुल प्रतियोगी तिलिस्म द्रव्य की ओर अग्रसर होते है और प्रत्येक क्षण अपनी विजयता कि ओर अग्रसर होते ही जाते है बधाओ की अधिकता स्वरूप प्रत्येक पग पर वे अपने सहभागी और प्रतिद्वंदी को भुल्य स्वरूप निनारण स्थान से बाहर निकलते है ।
• दूत पक्षी स्वरूप में आरव की ओर आते है और उन्हें संदेश देने का प्रयास करते है किंतु प्रतियोगिता आवश्यकता स्वरूप आरव माया प्रयोग करते है जिसके कारण दूत नीचे गिर जाते है और प्रतियोगीता स्थान से छीण हो बाहर आ जाते है । इस स्थिति में और माया के कारण अब दूत पुनः अंतः स्थान में प्रवेश में विफल थे ।
दूतो की शक्तिहीनता स्वरूप वे सभी महा गुरुओं के निकट पुनः चले जाते है । यहां महा गुरु अपनी ईश्वर कीर्ति में लगे हुए थे , दूतो के समाचार आने पर वे अपेक्षा कर रहे थे की उनका कार्य सफल हुआ किंतु दूत उन्हें अपनी असफलता का संदेश देते हुए अदृश्य होते है !
महा गुरु आर्शाह - प्रतीक्षा यह किसी भी शीघ्र कार्य की पुर्णता का संकेत नही अपितु यह समय नष्ट करने के समान है !
महा गुरु साहत - तो क्या तुम्हारे निकट कोई श्रेस्ट अन्य विकल्प है , यदि उत्तर सकारात्मक है तो कार्यसर अन्यथा वर्तमान में श्रम ही श्रेष्ठ है और वामिनो में उसके नियमों का अधगतन करना और कोई अनादरणीय पग बढ़ाना यह केवल समस्याओं को अवसर देना है !
महा गुरु आर्शाह - मेरा मत है की हमे स्वयं ही निनारण प्रतियोगिता स्थान पर प्रस्थान करके आरव से सहायता का प्रश्न करना चाहिए ।
तीनो महा गुरुओं के बाद संवाद स्वरूप आरव के निकटम स्थान पर प्रस्थान करके उनसे सहायता हेतु और भविष्य के होने वाला उस विनाशक संग्राम हेतु सचेत करना होगा । सभी महा गुरु माया द्वारा निनारण प्रतियोगिता स्थान पर पहुंच जाते है , यह निनारण प्रतियोगिता संपन्न हो चुकी थी और विजयता घोषित हो चुका था ।
महागुरु - हे आरव , हमे आपसे एकांत आपसे वार्तालाप हेतु कुछ क्षणों की आवश्यकता है । कृपया हमें समय दे !
आरव - मुझे तुम्हारी समस्या से अत्यधिक वामिनो और लिहास सम्मुख महत्त्वपूर्ण कार्य है जिनमे मेरी उपस्थिति अतिआवश्यक है । हे महा गुरुओं शंकः तुम अन्य स्थान पर आए । वर्तमान में तुम उचित स्थान की खोज प्रारम्भ रखे ।
आरव ने उन्हें सफलता का वर देते हुए कहा की " अपने कार्य का अन्य श्रेष्ठ मार्ग का चयन करे पूर्व इससे की देर हो जाए ।
• आरव उन्हें वार्तालाप पश्चात स्वयं आगे बढ़े और उन्हें भी अन्य किसी ओर का संकेत दिया किंतु वह उनके लिए आशैध्य था ।
महा गुरु आर्षाह - आरव की प्रतीक्षा , सामान्य लोक से द्वितीय लोक तक की आसामन्य यात्रा , आरव द्वारा विध्वंश का हल और वामिनो का उस विध्वंश में समाहित होने और सहायता की आशा क्या यह सब अब व्यर्थ हो गया ।
" क्या अब कोई शेष है जो हमारी सहायता करने में समर्थ होगा , मेरा मत अब यही है कि हमें वामिनो से अन्य लोक की ओर प्रस्थान करना ही श्रेष्ठ होगा !
विचार गुरुओं, आरव श्रेष्ट की वाक्य रचना । कदापि वे हमें किसी अन्य और उचित मार्ग की ओर प्रस्तावित होने संकेत दे रहे थे । किन्तु वर्तमान में हम असमर्थ हैं उनकी योजन को समझने में ।
तीनों गुरु ही श्रेष्ठ थे किंतु वर्तमान में शून्य भांति कारण की उन्हे कोई ज्ञाती ही नही थी भविष्य के उस दृश्य की ।
यहाँ महल में आरव समस्त भी प्रश्न थे उन्ही की आंतर हृदय के
© A R V
• बुद्धि की अधिकता सदैव ही अंत की ओर हमें अग्रसर करती है ।
प्रत्येक पग जीवन के हमें बड़ी ही सूझ बूझ और अनुभव के अधीन होकर ही करने चाहिए किंतु यह भी अनय स्वरूप है कि प्रत्येक निर्णय में हमारा मस्तिष्क ही हमारे निर्णय का स्वामित्व करता है !
• तीन माहा गुरुओं के बीच यहीं चर्चा प्रारब्ध थी की सबसे बड़ा विध्वंश कोनसा था !
महागुरु निहाद- मैंने जब विध्वंश देखा था आर्फेज का , वह आविश्वनीय ही था , मानो शांति की स्थापना करने हेतु स्वयं ही ईश्वरीय शक्ति पृथ्वी पर आ गई हो ।
महागुरु आर्शाह - इस बात का ज्ञान किसे नही है कि उस युद्ध में स्वयं ही आरव ने शस्त्र उठाए थे तो वह सर्वश्रेष्ठ विध्वंश क्यूं ना रहा हो किंतु मैं एक ऐसा श्रेष्ठ विध्वंश का साक्षी है जिसमे उस अनादि की इच्छा के अनुसार असामान्य के हाथो से येन कंकड़ की शक्तियां अंकुश हुई थी ।
तीनों महागुरुओ का तर्क ही हो रहा है था की कौन सा विध्वंश है जो सर्व विध्वंशक था और जिसकी ज्ञाती किसी भी ज्ञान पुस्तक या भविष्य वाणी में न थी ! इनका तर्क प्रारंभ ही था कि क्षण भंगुर में वे सभी अपने स्थान से लुप्त हो मानो भविष्य की सर्व विनाशी परिणाम के स्थल पर आ पहुंचे जहां संग्राम और विनाश अकल्पनीय था ।
तीनो महागुरुओ ने मस्तक जमीन पर रख एक स्वर में उस एक ईश्वर की कृति की और कहा हे आदि और अनादि, प्रत्येक सीमा और नियम से आविलाप , प्रत्येक के सृजन हार और विनाशक , हे अनादि कृपा करे ! यह कैसा विध्वंश है जिसके अंश में आरिफिन के क्रोध का भी समावेश है तो सिओन के धीरज का गरिमा एक भाग में जिया का ऊर्ध्व शक्ति स्त्रोत तो किसी अन्य भाग पर नई रचना का अंश !
• ए पालन हार हम तेरी लीला को समझने में असमर्थ है और बिना तेरे आशीष के हम व्यर्थ , कृपा हमारा मार्गदर्शन करे और इस महा विध्वंश के पीछे का कारण और इसमें हमारी आवश्कता का संकेत करे ।
प्रत्येक का ऐसा आविलापी विध्वंश यह मानो संसार का ही अंत हो।
उस आनादि परमात्मा जिसका अस्तित्व जन्म और मृत्य काल से पवित्र उसकी लीला प्रदर्शित हुई और अपनी नियमानुसार उसने संकेत दिया और कहा ," महा गुरुओं तुम्हारा जन्म और तुम्हारी भूमिका मुझी से है और तुम्हे भी मुझी में आकर विलय हो जाना किंतु क्या तुम्हे यह प्रिय नही की तुम इस घटना क्रम का एक अंग बनो!
तीनों महा गुरुओं ने शीष को भूमि से उठाकर कहने लगा ," यह हमारा सौभाग्य है की हम इस महा विध्वंश में अंभिज्ञ भाग बनने से ।
हे अनादि शक्ति हमे संकेत दे हमारे कार्यों का और उत्तरदायित्व का ताकि हम उन्हें वहन करने में सक्षम हो ।
यहा संग्राम प्रारंभ ही था और मध्य में अदृश्य थे तीन महा गुरु जो भूत काल से आए थे भविष्य के कार्यों को सम्पूर्ण करने ! तीनो ने आनादि ईश्वरीय संकेत अनुसार कल्पना को सफल किया और आकाश की ओर वहन कर पुनः अपने समय काल में आने का प्रयास कर प्रस्तुत उसी स्थान पर आ गए । तीनो महा गुरु अब भी उसी विध्वंश के आयोजन और उसके निर्वाह कार्य के बारे में सोच रहे थे , कि तभी सभी महा गुरुओं द्वारा योजन हुआ की हमे आरव से सहायता हेतु वामिनो की ओर जाना चाहिए कारण की यदि कही उस ईश्वर की लीला सार केंद्र है तो वामिनो उनमें से एक !
( सभी के सधिन्न विचार के पश्चात वे वामिनो की ओर प्रस्थान करते है )
यहां नौ दैत्य शक्तियों का जन्म निकट ही था जिनका जीवन , जीवनकाल और मृत्यु यह समस्त संसार को पुनः उन श्रेष्ठ , जीवन निर्वाह और उस एक ईश्वर की शरण में ले जायेगी । नौ दैत्य के गुण क्रमानुसार - क्रोध, द्वेष , ईर्ष्या , अहंकार , स्वामित्वता , निर्लज्जता , लोभ , शक्ति और आलस्य ये सभी विकार है मानव और लिहास के जीवन का और इन्ही की संभाग्यता से संपूर्णता का नीड से विनाश हो जाता है ।
यहां वामिनो में निनारण प्रतियोगिता का अंतिम चरण प्रारंभ था जिसके विजयता को वामिनो के मिटाय समूह के मुखिया के स्वरूप में नियुक्त किया जाता ! यहां तीनों महा गुरु अपनी निच्छल यात्रा के सांत्वना और वामिनो के दुर्लभ मार्ग से प्रशस्त हो गार महल में प्रस्थान करते है । वामिनो का परिचय किसी से नही अदृश्य यह माया और जादू का मानो उदगम स्थानों में से एक हो । यहां रचनाये पिछले से अनभिज्ञ और परिणाम यह आरव आधारित। वामिनो में तीनो महा गुरु गार महल के द्वार पर खड़े द्वार पालो को स्वयं के लिए द्वार खोलने के लिए कहते है किंतु उनकी आवशिष्टा और शक्ति के तेजाश्व से बारह द्वार पाल द्वार ना खोलते हुए उन्हें उत्तर देते है " हमे ज्ञात नही की आप तीनो कोन है , कृपा अपना सामान्य और सरल परिचय देते हुए अपने आने का कारण बताए अपितु आरव के पुनः वामिनो महल में लौटना की प्रतीक्षा कर " ।
यह उत्तर तीनो सम्मानित गुरुओं के लिए आचार्य पूरक था कारण की ज्ञान और एकाग्रता के स्वामित्व पश्चात बड़े बड़े व्यक्तित्व धारण मनुष्य और राजा उनकी प्रतीक्षा करते किंतु आज की घटना विरुद्ध थी !
महा गुरु आर्शाह - श्रेष्ठ विकल्प यही होगा कि हम आरव के पुनः आगमन की प्रतीक्षा करे कारण की बिना उनकी अनुमति स्वयं ही आरव अंश महल की भीतरी स्थानों में प्रवेश नही कर सकते तो हमारे लिए भी यही श्रेष्ठ होगा ! और प्रतीक्षा यह तो सर्वगुणों में से एक है ।
महा गुरु निनाद - विचार और मत तुम्हारा भार युक्त है किंतु प्रिय हमारी स्थिति प्रतीक्षा की नही है श्रेष्ठ यही होगा की हम आरव को वामिनो के अन्य स्थान पर ढूंढे।
महा गुरु साहत - महा गुरुओं, तर्क के स्थान पर सदैव ही युक्ति को स्थान देना चाहिए और विवाद से पहले ही निवारण । श्रेष्ठ यही होगा कि हम सभी अपने दूतो को वामिनो के अन्य स्थानों और संभव स्थान पर भेजे और स्वयं ही उन दूतो या आरव के पुनः आगमन तक ईश्वर की कीर्ति में मुग्ध हो अपने स्तरों में वृद्धि करे ।
महा गुरु साहत के मत से अन्य गुरु सहमत हो सभी अपने वैभव दूतो को प्रतियोगिता स्थान और अन्य स्थानों के ओर जाने का आदेश देते है और स्वयं ईश्वरीय कीर्ति में मन मुग्ध हो आरव के आगमन की प्रतिक्षा करने लगते है !
यहां गुरु दूत आरव के प्रतियोगिता स्थान और अन्य स्थानों की ओर घूमते है और महा गुरु आदेशानुसार आरव को महा गुरुओं के आगमन और उनका संदेश देता है । यहां निनारण प्रतियोगिता अंत क्रमों में थी और विचित्र माया जाल को लांघ कर कुल प्रतियोगी तिलिस्म द्रव्य की ओर अग्रसर होते है और प्रत्येक क्षण अपनी विजयता कि ओर अग्रसर होते ही जाते है बधाओ की अधिकता स्वरूप प्रत्येक पग पर वे अपने सहभागी और प्रतिद्वंदी को भुल्य स्वरूप निनारण स्थान से बाहर निकलते है ।
• दूत पक्षी स्वरूप में आरव की ओर आते है और उन्हें संदेश देने का प्रयास करते है किंतु प्रतियोगिता आवश्यकता स्वरूप आरव माया प्रयोग करते है जिसके कारण दूत नीचे गिर जाते है और प्रतियोगीता स्थान से छीण हो बाहर आ जाते है । इस स्थिति में और माया के कारण अब दूत पुनः अंतः स्थान में प्रवेश में विफल थे ।
दूतो की शक्तिहीनता स्वरूप वे सभी महा गुरुओं के निकट पुनः चले जाते है । यहां महा गुरु अपनी ईश्वर कीर्ति में लगे हुए थे , दूतो के समाचार आने पर वे अपेक्षा कर रहे थे की उनका कार्य सफल हुआ किंतु दूत उन्हें अपनी असफलता का संदेश देते हुए अदृश्य होते है !
महा गुरु आर्शाह - प्रतीक्षा यह किसी भी शीघ्र कार्य की पुर्णता का संकेत नही अपितु यह समय नष्ट करने के समान है !
महा गुरु साहत - तो क्या तुम्हारे निकट कोई श्रेस्ट अन्य विकल्प है , यदि उत्तर सकारात्मक है तो कार्यसर अन्यथा वर्तमान में श्रम ही श्रेष्ठ है और वामिनो में उसके नियमों का अधगतन करना और कोई अनादरणीय पग बढ़ाना यह केवल समस्याओं को अवसर देना है !
महा गुरु आर्शाह - मेरा मत है की हमे स्वयं ही निनारण प्रतियोगिता स्थान पर प्रस्थान करके आरव से सहायता का प्रश्न करना चाहिए ।
तीनो महा गुरुओं के बाद संवाद स्वरूप आरव के निकटम स्थान पर प्रस्थान करके उनसे सहायता हेतु और भविष्य के होने वाला उस विनाशक संग्राम हेतु सचेत करना होगा । सभी महा गुरु माया द्वारा निनारण प्रतियोगिता स्थान पर पहुंच जाते है , यह निनारण प्रतियोगिता संपन्न हो चुकी थी और विजयता घोषित हो चुका था ।
महागुरु - हे आरव , हमे आपसे एकांत आपसे वार्तालाप हेतु कुछ क्षणों की आवश्यकता है । कृपया हमें समय दे !
आरव - मुझे तुम्हारी समस्या से अत्यधिक वामिनो और लिहास सम्मुख महत्त्वपूर्ण कार्य है जिनमे मेरी उपस्थिति अतिआवश्यक है । हे महा गुरुओं शंकः तुम अन्य स्थान पर आए । वर्तमान में तुम उचित स्थान की खोज प्रारम्भ रखे ।
आरव ने उन्हें सफलता का वर देते हुए कहा की " अपने कार्य का अन्य श्रेष्ठ मार्ग का चयन करे पूर्व इससे की देर हो जाए ।
• आरव उन्हें वार्तालाप पश्चात स्वयं आगे बढ़े और उन्हें भी अन्य किसी ओर का संकेत दिया किंतु वह उनके लिए आशैध्य था ।
महा गुरु आर्षाह - आरव की प्रतीक्षा , सामान्य लोक से द्वितीय लोक तक की आसामन्य यात्रा , आरव द्वारा विध्वंश का हल और वामिनो का उस विध्वंश में समाहित होने और सहायता की आशा क्या यह सब अब व्यर्थ हो गया ।
" क्या अब कोई शेष है जो हमारी सहायता करने में समर्थ होगा , मेरा मत अब यही है कि हमें वामिनो से अन्य लोक की ओर प्रस्थान करना ही श्रेष्ठ होगा !
विचार गुरुओं, आरव श्रेष्ट की वाक्य रचना । कदापि वे हमें किसी अन्य और उचित मार्ग की ओर प्रस्तावित होने संकेत दे रहे थे । किन्तु वर्तमान में हम असमर्थ हैं उनकी योजन को समझने में ।
तीनों गुरु ही श्रेष्ठ थे किंतु वर्तमान में शून्य भांति कारण की उन्हे कोई ज्ञाती ही नही थी भविष्य के उस दृश्य की ।
यहाँ महल में आरव समस्त भी प्रश्न थे उन्ही की आंतर हृदय के
© A R V