लो खां कल्लो बात (मोहब्बत-ए-पीएचडी)
लो खां कल्लो बात (मोहब्बत-ए-पीएचडी)
आज यूनिवर्सिटी में फार्म भरने की तैयारी में लगा था सारे पेपर चेक इसलिए कर रहा था के कहीं कोई गलती न हो जाए... तभी चच्चा आ धमके उनकी हालत देख कर बिलकुल ऐसा लगा के साक्षात मजनू मेरे सामने खड़ा हो क्योंकि जब से चच्चा की तीसरी बेगम इश्क़ के खुमार में फुर्र हुई थी तब से चच्चा ने अपने आपको कमरे में कैद कर लिया था मैंने उन्हें देख कर बैठने को कहाँ तो चच्चा ने पठानी की जेब से एक कागज का पुलन्दा निकाल कर मेरे सामने रख दिया मैंने उन्हें इशारे से पूछा ये क्या हैं तो वो बैठते हुए बोले
ये मोहब्बत-ए-दर्द हैं जुगनू मियां... जितना हमने ज़ेबा से इश्क़ किया उतना हमने न शब्बो से किया था और न ही आसिफा से किया था मिया जितना उन दोनों के मेरी ज़िन्दगी से जाने का गम नहीं हुआ उससे दोगुना गम ये कमबख्तमारी ज़ेबा हमें ज़िन्दगी भर का दर्द दे गई उसी की तन्हाई में इन कागज़ों पे हमने अपना दर्द बयां किया हैं जुगनू मियां.... हाय ज़ेबा...
मैंने उस कागज़ के पुलन्दे के पेपरों को सरसरी निगाह से उलट प्लाट कर देखा और चच्चा से पूछा
इनका करना क्या हैं...?
जुगनू मियां ये उस वेबफा के धोखे और दर्द की दस्ता हैं जो शायद ही किसी को इश्क़ में मिला हो आप तो इसकी किताब छपवा दो और हमें आपके टीवी चैनल पे लाइव बिठा दो बस
उससे क्या होगा...?
लो कल्लो बात क्या होगा...? उस कम्बख्त को पता तो चलेगा के उसने हमारे साथ क्या किया हैं
लेकिन चच्चा ये इतना आसान नहीं हैं...
फिर जो आसान हो आप वो करवा दे बस हम उसकी इस वेबफाई की नसीहत देना चाहते हैं उसे हम अपने इस इश्क़ के एहसास को जताना चाहते हैं.
मैंने वही कहां न उससे होगा क्या चच्चा भाभी जी को आपके पास से गए साल भर होने को हैं और आपके पास तो वो वामुश्किल एक महीना भी नहीं रही थी मैं मानता हूं के आप उसे नहीं भूल पा रहें हो लेकिन वो आपको एक सपना समझ कर कब का भूल चुकी होंगी... बेहतर हैं अब आप भी भूल जाओ
इतना सुनते ही चच्चा चुप्पी साध गए मानो उन्हें मेरी बात का सदमा लग गया हो वैसे ही उनकी पैसठ की उम्र के सिंगल पसली के ज़मींदार हैं फिर भी जज़्बा ऐसा के किसी के भी फ़टे में टांग अड़ा देने वाले शोलों की तरह गरजने वाले अब इश्क़ के चक्कर में मायूस मेरे सामने बैठे हैं मैं मन ही मन सोच ही रहा था के चच्चा बोल पड़े
अच्छा जुगनू मियां एक बात बताओ ये मोहब्बत हैं क्या बला...? मोहब्बत क्यों होती है ? कैसे होती है ? इसकी परिभाषा क्या है ? लोग मोहब्बत क्यों करते हैं ?
चच्चा के सवाल मेरे सामने खड़े हो गए थे इन प्रश्नों का जबाब तो मैं भी कभी नहीं जान पाया था फिर भी मैंने उन्हें गोल मोल जबाब दे कर चलता करूं तो अपने काम के लिए निकलूं
चच्चा अगर आप बुरा न मानो तो मुझे अभी जरूरी काम से यूनिवार्सिटी जाना हैं.. इस मसले पर अगर हम बाद में बात करें तो...
मोहब्बत और दोस्ती में वेबफा जेबा और जुगनू मियां भी निकले
बचा खुचा सा हैं दम जो हमारा इस दोस्त की बगावत से हैं निकले...........ठीक हैं चलिए ज़नाब अगर मौत नहीं आई तो मिलते हैं.
अरे चच्चा आप तो बुरा मान गए असल में आज पीएचडी के एडमिशन के फॉर्म की लास्ट डेट हैं आपके आने के पहले बस जाने की तैयारी ही कर रहा था वो तो आप आगये तो मैं रुक गया
भाई मियां का लल्लोगे ये पीएचडी करके
अरे मुझे नहीं करनी हैं वो नमिता को करनी हैं
लो कल्लो बात इतना बड़ा एसडीएम मोहतरमा का केस पूरा हिन्दोस्तान जान रहा हैं उसका खसम दर दर की ठोकरे खारिया हैं कित्तो ने उसके ये हालत देख के अपनी बीबीयों की पढ़ाई छुड़वा दी....फिर भी आपकी अक्ल ठिकाने नहीं आ रही हैं अब हमारा ही मसला लेलो तुम्हारी चाची भी बीए पास थी गुल खिला के निकल ली मियां आज के ज़माने में दिल जितने जुड़ नहीं रहें हैं उससे ज्यादा वेबफाई में टूट रिए हैं मैं तो केता हूं के उनकी जगह तुम्हे पीएचडी कर लेनी चाहिए
चच्चा मैं तो ऑलरेडी पीएचडी होल्डर हूं
ठीक हैं मिया आप पीएचडी के होल्डर हो लेकिन आप कर क्या रिए हो...वही भाग दौड़ और टीवी पर चिल्लाचोट करना मियां इससे कुछ नहीं होरिया हैं ज़माना तो बदल रिया हैं लेकिन आदमी वैसा नहीं बदलरिया हैं जैसा बदलना चाहिए वैसे आप किस मुद्दे पे पीएचडी होल्डर हुए पड़े हो...? ज़रा हम भी समझे..?
चच्चा आपको कैसे समझाऊ मैंने सामाजिक उत्थान पर पीएचडी की हैं
अच्छा तो मियां आप ने नेताओ के गुणों के मिजाज पे पीएचडी की हैं
मैं अपना सर पकड़ते हुए कहता हूं
अरे नहीं चच्चा मैंने कहा न आपके समझ में नहीं आएगा.
लो कल्लो बात.........मियां कैसे नई आएगा..मना हमारी उमर जवानी के दौर से कोसो दूर गुजर गई हैं लेकिन ये सामाजिक उत्थान के लीडरों के वादों से हूं बहुत नजदीकी से वाकिफ हैं... चलों मना आपने इस मुद्दे पे पीएचडी कर ली कित्ते साल पेले की
यही कोई 10 साल होने जा रहें हैं
क्या उखाड़ लिया आपने इस होल्डरशिप से जरा हम भी तो जाने... मियां इस वक़्त भले हम जेबा की वेबफाई के सदमे में हैं इसका मतलब ये नई हैं के हमारे दीमाग के बल्ब का फियूज उड़ गया हैं जनाब इस मोहब्बत में अधमरे जरूर हुए हैं लेकिन होश में हैं इतना तो समझते हैं के सामाजिक उत्थान होता क्या हैं.
मैं मानता हूं आप मुझसे उम्र और तजुर्वे में सीनियर हैं लेकिन ये नेताओं की नेतागिरी से बहुत अलग पढ़ाई होती हैं शोध होता हैं
शोध मतलब किसी भी मुद्दे की जानकारी पे खोजबीन करके पढ़ाई करना हे ना...?
हां यही होता हैं...
तो ये मोहब्बत भी तो सामाजिक जमात का एक सुलगता हुआ मुद्दा हैं... इस पे पीएचडी क्यों नहीं की आपने...
चच्चा की इस बात पर मैं चुप हो गया हलाकि बात 100% सही थी समाज में ये जहरीला नशा बेहद तेजी से पैर पसार रहा हैं हालांकि मोहब्बत करना कोई बुरा नहीं हैं लेकिन मोहब्बत के नाम पर धोखा छलावा करना गुनाह हैं.
जुगनू मियां...किस सोच में डूब रिए हो...
यही के कोई मोहब्बत अपनी हसरतों के लिए करता हैं और धोखा देदेता हैं और कोई मोहब्बत के खातिर दुश्मनी की सीमाए लांघ के हमारे देश में आने का जोखिम उठा लेता हैं
यही तो हम के रिए हैं जुगनू मियां के इस मोहब्बत की वेबफाई के बारे में कौन सोचेगा...?
मैं चुप्पी लिए चुपचाप बैठा था... चच्चा मेरे जवाब के इंतज़ार में थे मैं सारे डाकुमेंट फाइल में जमाने लगा था चच्चा ने गहरी सांस भरते हुए उठे थे मानो उन्होंने मेरे जवाब की उम्मीद ही छोड़ दी हो और वो मुंह ही मुंह में बुदबूदाते हैं चलें गए थे.
क्रमशः -2
© DEEPAK BUNELA
आज यूनिवर्सिटी में फार्म भरने की तैयारी में लगा था सारे पेपर चेक इसलिए कर रहा था के कहीं कोई गलती न हो जाए... तभी चच्चा आ धमके उनकी हालत देख कर बिलकुल ऐसा लगा के साक्षात मजनू मेरे सामने खड़ा हो क्योंकि जब से चच्चा की तीसरी बेगम इश्क़ के खुमार में फुर्र हुई थी तब से चच्चा ने अपने आपको कमरे में कैद कर लिया था मैंने उन्हें देख कर बैठने को कहाँ तो चच्चा ने पठानी की जेब से एक कागज का पुलन्दा निकाल कर मेरे सामने रख दिया मैंने उन्हें इशारे से पूछा ये क्या हैं तो वो बैठते हुए बोले
ये मोहब्बत-ए-दर्द हैं जुगनू मियां... जितना हमने ज़ेबा से इश्क़ किया उतना हमने न शब्बो से किया था और न ही आसिफा से किया था मिया जितना उन दोनों के मेरी ज़िन्दगी से जाने का गम नहीं हुआ उससे दोगुना गम ये कमबख्तमारी ज़ेबा हमें ज़िन्दगी भर का दर्द दे गई उसी की तन्हाई में इन कागज़ों पे हमने अपना दर्द बयां किया हैं जुगनू मियां.... हाय ज़ेबा...
मैंने उस कागज़ के पुलन्दे के पेपरों को सरसरी निगाह से उलट प्लाट कर देखा और चच्चा से पूछा
इनका करना क्या हैं...?
जुगनू मियां ये उस वेबफा के धोखे और दर्द की दस्ता हैं जो शायद ही किसी को इश्क़ में मिला हो आप तो इसकी किताब छपवा दो और हमें आपके टीवी चैनल पे लाइव बिठा दो बस
उससे क्या होगा...?
लो कल्लो बात क्या होगा...? उस कम्बख्त को पता तो चलेगा के उसने हमारे साथ क्या किया हैं
लेकिन चच्चा ये इतना आसान नहीं हैं...
फिर जो आसान हो आप वो करवा दे बस हम उसकी इस वेबफाई की नसीहत देना चाहते हैं उसे हम अपने इस इश्क़ के एहसास को जताना चाहते हैं.
मैंने वही कहां न उससे होगा क्या चच्चा भाभी जी को आपके पास से गए साल भर होने को हैं और आपके पास तो वो वामुश्किल एक महीना भी नहीं रही थी मैं मानता हूं के आप उसे नहीं भूल पा रहें हो लेकिन वो आपको एक सपना समझ कर कब का भूल चुकी होंगी... बेहतर हैं अब आप भी भूल जाओ
इतना सुनते ही चच्चा चुप्पी साध गए मानो उन्हें मेरी बात का सदमा लग गया हो वैसे ही उनकी पैसठ की उम्र के सिंगल पसली के ज़मींदार हैं फिर भी जज़्बा ऐसा के किसी के भी फ़टे में टांग अड़ा देने वाले शोलों की तरह गरजने वाले अब इश्क़ के चक्कर में मायूस मेरे सामने बैठे हैं मैं मन ही मन सोच ही रहा था के चच्चा बोल पड़े
अच्छा जुगनू मियां एक बात बताओ ये मोहब्बत हैं क्या बला...? मोहब्बत क्यों होती है ? कैसे होती है ? इसकी परिभाषा क्या है ? लोग मोहब्बत क्यों करते हैं ?
चच्चा के सवाल मेरे सामने खड़े हो गए थे इन प्रश्नों का जबाब तो मैं भी कभी नहीं जान पाया था फिर भी मैंने उन्हें गोल मोल जबाब दे कर चलता करूं तो अपने काम के लिए निकलूं
चच्चा अगर आप बुरा न मानो तो मुझे अभी जरूरी काम से यूनिवार्सिटी जाना हैं.. इस मसले पर अगर हम बाद में बात करें तो...
मोहब्बत और दोस्ती में वेबफा जेबा और जुगनू मियां भी निकले
बचा खुचा सा हैं दम जो हमारा इस दोस्त की बगावत से हैं निकले...........ठीक हैं चलिए ज़नाब अगर मौत नहीं आई तो मिलते हैं.
अरे चच्चा आप तो बुरा मान गए असल में आज पीएचडी के एडमिशन के फॉर्म की लास्ट डेट हैं आपके आने के पहले बस जाने की तैयारी ही कर रहा था वो तो आप आगये तो मैं रुक गया
भाई मियां का लल्लोगे ये पीएचडी करके
अरे मुझे नहीं करनी हैं वो नमिता को करनी हैं
लो कल्लो बात इतना बड़ा एसडीएम मोहतरमा का केस पूरा हिन्दोस्तान जान रहा हैं उसका खसम दर दर की ठोकरे खारिया हैं कित्तो ने उसके ये हालत देख के अपनी बीबीयों की पढ़ाई छुड़वा दी....फिर भी आपकी अक्ल ठिकाने नहीं आ रही हैं अब हमारा ही मसला लेलो तुम्हारी चाची भी बीए पास थी गुल खिला के निकल ली मियां आज के ज़माने में दिल जितने जुड़ नहीं रहें हैं उससे ज्यादा वेबफाई में टूट रिए हैं मैं तो केता हूं के उनकी जगह तुम्हे पीएचडी कर लेनी चाहिए
चच्चा मैं तो ऑलरेडी पीएचडी होल्डर हूं
ठीक हैं मिया आप पीएचडी के होल्डर हो लेकिन आप कर क्या रिए हो...वही भाग दौड़ और टीवी पर चिल्लाचोट करना मियां इससे कुछ नहीं होरिया हैं ज़माना तो बदल रिया हैं लेकिन आदमी वैसा नहीं बदलरिया हैं जैसा बदलना चाहिए वैसे आप किस मुद्दे पे पीएचडी होल्डर हुए पड़े हो...? ज़रा हम भी समझे..?
चच्चा आपको कैसे समझाऊ मैंने सामाजिक उत्थान पर पीएचडी की हैं
अच्छा तो मियां आप ने नेताओ के गुणों के मिजाज पे पीएचडी की हैं
मैं अपना सर पकड़ते हुए कहता हूं
अरे नहीं चच्चा मैंने कहा न आपके समझ में नहीं आएगा.
लो कल्लो बात.........मियां कैसे नई आएगा..मना हमारी उमर जवानी के दौर से कोसो दूर गुजर गई हैं लेकिन ये सामाजिक उत्थान के लीडरों के वादों से हूं बहुत नजदीकी से वाकिफ हैं... चलों मना आपने इस मुद्दे पे पीएचडी कर ली कित्ते साल पेले की
यही कोई 10 साल होने जा रहें हैं
क्या उखाड़ लिया आपने इस होल्डरशिप से जरा हम भी तो जाने... मियां इस वक़्त भले हम जेबा की वेबफाई के सदमे में हैं इसका मतलब ये नई हैं के हमारे दीमाग के बल्ब का फियूज उड़ गया हैं जनाब इस मोहब्बत में अधमरे जरूर हुए हैं लेकिन होश में हैं इतना तो समझते हैं के सामाजिक उत्थान होता क्या हैं.
मैं मानता हूं आप मुझसे उम्र और तजुर्वे में सीनियर हैं लेकिन ये नेताओं की नेतागिरी से बहुत अलग पढ़ाई होती हैं शोध होता हैं
शोध मतलब किसी भी मुद्दे की जानकारी पे खोजबीन करके पढ़ाई करना हे ना...?
हां यही होता हैं...
तो ये मोहब्बत भी तो सामाजिक जमात का एक सुलगता हुआ मुद्दा हैं... इस पे पीएचडी क्यों नहीं की आपने...
चच्चा की इस बात पर मैं चुप हो गया हलाकि बात 100% सही थी समाज में ये जहरीला नशा बेहद तेजी से पैर पसार रहा हैं हालांकि मोहब्बत करना कोई बुरा नहीं हैं लेकिन मोहब्बत के नाम पर धोखा छलावा करना गुनाह हैं.
जुगनू मियां...किस सोच में डूब रिए हो...
यही के कोई मोहब्बत अपनी हसरतों के लिए करता हैं और धोखा देदेता हैं और कोई मोहब्बत के खातिर दुश्मनी की सीमाए लांघ के हमारे देश में आने का जोखिम उठा लेता हैं
यही तो हम के रिए हैं जुगनू मियां के इस मोहब्बत की वेबफाई के बारे में कौन सोचेगा...?
मैं चुप्पी लिए चुपचाप बैठा था... चच्चा मेरे जवाब के इंतज़ार में थे मैं सारे डाकुमेंट फाइल में जमाने लगा था चच्चा ने गहरी सांस भरते हुए उठे थे मानो उन्होंने मेरे जवाब की उम्मीद ही छोड़ दी हो और वो मुंह ही मुंह में बुदबूदाते हैं चलें गए थे.
क्रमशः -2
© DEEPAK BUNELA