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सात रंगों सा इश्क़
सुभी की दुनिया शब्दों में बसती थी। एक ऐसी दुनिया, जहां वह अपनी भावनाओं को शब्दों के रूप में पिरोती थी। हर एहसास, हर लम्हा वो कविता में समेट देती थी। उसकी कविताएं उसके दिल का आईना थीं—हर शब्द उसके भीतर के तूफान, उसके सुख-दुख, उसकी संवेदनाओं को व्यक्त करता था। जब वह अपनी कविता लिखती, तो ऐसा लगता जैसे वह खुद को, अपनी सच्चाई को, अपने दिल की आवाज़ को ढूँढ़ रही हो। उसकी कविताओं में जैसे इंद्रधनुष के सात रंग होते—हर रंग की अपनी अलग भावना, अपना अलग रुख। वह कभी खुशी से झलकते थे, तो कभी दुख से छलकते। कभी प्यार की तीव्रता में डूबते, तो कभी विरह के दर्द में लहराते।

लेकिन सुभी के लिए इन शब्दों से बढ़कर कोई चीज़ नहीं थी। शब्दों के जरिए वह खुद को और दुनिया को समझने की कोशिश करती थी। उस छोटे से कोने में, जो उसने अपनी कविताओं के लिए चुना था, वह खुद को बयां करती थी। दुनिया से छुपकर, अपने ख्वाबों में खो जाने की कोशिश करती थी। लेकिन कभी किसी ने उसकी कविताओं को सच्चे अर्थों में नहीं समझा था।

दूसरी ओर, सान था। एक गंभीर स्वभाव का लड़का, जिसकी सोच गहरी थी और जो समाज के मुद्दों पर लिखता था। उसकी कहानियाँ सिर्फ कहानियाँ नहीं, बल्कि समाज का आईना होती थीं। उसकी लेखनी में एक शक्ति थी, जो समाज की सच्चाईयों को उजागर करती थी। सान कभी नहीं जानता था...